‘Roti Daal’, a poem by Ritika Srivastava

हमारी ज़िन्दगी में रौशनी है और रहेगी
हम इंसान हैं इसलिए उम्मीद से रस्ते को ताकते हैं

आधी रोटी और पूरी ज़मी के साथ देखते हैं सड़क पर सपने

इन मैले हाथों की लकीरों में देखते हैं अपना कल
सवारते नहीं हैं बाल न देखते हैं कपड़ों का हाल

बस सोचते हैं हर दिन बेहतर
सुबह हो
और वो सुबह आज की सुबह से अलग हो

उस सुबह हमारे हाथ में हो फिर से आधी रोटी
पर उस सुबह हो रोटी के साथ थोड़ी दाल!