‘Sadaandh’, a poem by Chandrakant Nagar

पैबंद लगे कपड़ों से
झाँकता बचपन
और मुस्कराते हुए
पन्नियाँ बीनते
बच्चे,
दुत्कारते लोग,
और आती दुर्गंध…
समाज की भी तो
हो सकती है
ये सड़ांध।

Previous articleऔर सर्द धरती गर्म हो गई
Next articleमेरा शहर

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here