10 सितंबर 2017, रविवार के दिन जब आधी दिल्ली, शाम के मनोरंजन के प्लान बना रही थी, तब दिल्ली का एक कोना सुबह से ही कविताओं और गीतों में खोया हुआ था। मौका था दिल्ली के पोएट्री ग्रुप ‘पोएट्स कलेक्टिव’ की तीसरी सालगिरह और स्थान था कनॉट प्लेस स्थित अक्षरा थियेटर। ‘संग-ए-मील’ (मील का पत्थर) नाम के इस इवेंट का आयोजन पोएट्स कलेक्टिव की फाउंडर सौम्या कुलश्रेष्ठ ने किया था, जिसमें मुझे भी शरीक होने का मौका मिला। इसका आँखों देखा हाल आपके सामने रखने जा रही हूँ..

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शुरुआत में सौम्या कुलश्रेष्ठ ने मंच पर आकर इस ग्रूप के शानदार सफ़र से दर्शकों को रूबरू कराया और बताया कि कैसे बीते तीन सालों में इस ग्रूप से हिन्दी, उर्दू, और अँग्रेज़ी के ऐसे कवि और शायर जुड़े हैं, जिन्हें अगर मंच पर उतारा जाए तो दर्शक दीर्घा में उपस्थित श्रोता विस्मित हुए बिना नहीं रह पाते। उनके इस संक्षिप्त परिचय के बाद एक-एक कर कवियों और कलाकारों ने अपनी परफॉरमेंस दीं।

शुरुआत हुई ध्रुव परगई के उत्कृष्ट गायन से। ‘निंदिया रे’ और ‘आहिस्ता आहिस्ता’ जैसी खूबसूरत ग़ज़ल और उतनी ही खूबसूरत ध्रुव की आवाज़।

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कविताओं से पहले ध्रुव के गीत उस ठंडक सरीखे थे, जो बारिश आने से पहले महसूस की जाती है।

फिर आए कृतान्त मिश्रा, जिनके द्वारा सुनाई गयी कविता ‘राधा-मीरा’ कृष्ण की दो प्रेमिकाओं के संवाद के रूप में लिखी गयी थी। राधा- मीरा के मन के भाव उन्होंने एक बड़ी ही आकर्षक शैली में प्रस्तुत किये । 21 साल की उम्र में भाषा और अभिव्यक्ति पर अपनी मज़बूत पकड़ के कारण कृतान्त की कविताएं लोगों को दिनों-महीनों तक याद रहती हैं।

शुरुआत जहाँ ग़ज़ल-गायन और उत्कृष्ट हिंदी की कविता से हुई तो इसके बाद मंच पर उतरे प्रतीक और ईशान ने अँग्रेज़ी में एक डुयेट पेश किया जो रेगुलर पोएट्री से अलग भी था और अनोखा भी।

“I realize that we must realize,
that our bodies are nothing but lines that come to an end.”

अपनी उम्र से आगे दौड़ते इन दोनों की कविता में जहाँ प्रश्न उठते थे, तो साथ ही उनका समाधान भी एक नयी सोच के साथ पेश किया जाता रहा।

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फिर वैष्णवी ने अपनी कविता से एक औरत की वो तस्वीर पेश की जिसे स्वीकारने में हम प्रायः कतराते नज़र आते हैं लेकिन वो खुद अब कतराना छोड़ चुकी है, तो लवीना की कविता ने एक घर और मकान के बीच की दूरी को मापा। कह सकते हैं कि इस इवेंट में कविता के हर रूप, हर रस का स्वाद मिल रहा था..।

रजनीश गौतम कविता में कहते मिले कि ‘जानां, इस दफा जो मेरे घर आना, ज़रा तसल्ली से आना’ और रास्ते में आने वाली तमाम परिस्थितियों को बहुत खूबसूरती से शब्दों में उकेर गये, तो दूसरी तरफ अधिराज जैन के पास थीं समाज को दर्पण दिखाती दमदार कविताएँ जिनमें एक आम इंसान के भीतर चल रहे द्वन्द साफ़ दिखायी दे रहे थे तभी तो उनपर तालियों की बारिश हो गयी..

“रावण का वध मैं क्यूँ करूँ, राम मेरा नाम नहीं”

इन पंक्तियों में छुपा व्यंग्य सुनने वालों से नहीं छुप पाया।

तौसीफ़ अहमद की प्रेम की चाशनी में डूबी शायरी ने कभी दर्शकों को गुदगुदाया तो कभी हल्का सा मुस्कुराने पर मजबूर किया। शशांक शुक्ला ने अपने ही अंदाज़ में दमदार शायरी पढ़ लोगों को दाद देते रहने पर मजबूर कर दिया। उनकी शायरी में प्रेम के अलग-अलग रंग भी थे और अपने पसंदीदा शायर जॉन एलिया के अशआरों की महक भी। इसके बाद मोहित ने एक बहुत ही संवेदनशील मुद्दे की ओर सुनने वालों का ध्यान खींचा। पुरुषों के यौन शोषण पर लिखी गयी उनकी कविता तमाम लोगों के ज़हन में लंबे समय तक मौजूद रहेगी।

इन सब के बाद दो ऐसे कवि मंच पर उपस्थित हुए जिनकी कविताएँ कोई भी व्यक्ति किताब के रूप में तसल्ली से पढ़ना और समझना चाहेगा।

“गर फ़िरदौस बर-रुए ज़मीं अस्त, हमीं अस्तो, हमीं अस्तो, हमीं अस्तो” से शुरू हुई आतिफ ख़ान की नज़्म ने कश्मीर का ऐसा सुन्दर चित्र प्रस्तुत किया जो एक पेंटिंग में समा लेने के क़ाबिल था। कश्मीर की वादियों सी ही सुंदर उनकी कविता दोपहर की बेहतरीन कविताओं में से एक रही।

अनुराग वत्स की अंग्रेजी कविता भी एक खूबसूरत सपने की तरह खुलती दिखी जिसे आप खत्म नहीं होने देना चाहते..

“Wax is eternal, it’s the wick that dies,
Laughter remains, in spite of all the cries.
Melt the wax and remold it.
Re-shape the good times and hold it…
For this is something which will remain,
It’s this love, which will keep you sane”

इस इवेंट का सबसे विशिष्ट और अनूठा हिस्सा रही सौम्या, निमिषा और संजय की प्रस्तुति। संजय की बांसुरी के सुरों पर सौम्या का नेरुदा और गुलज़ार की कविताओं का पाठ और इन कविताओं को मंच पर जीवित करता निमिषा का नृत्य, तीन कलाओं का इस तरह समागम एक बहुत ही अनूठी सोच थी जिसे दर्शकों का भरपूर प्यार मिला।

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पोएट्स कलेक्टिव की ट्रेडिशन को कायम रखते हुए इवेंट अंजाम तक पहुंचा सबके एक साथ मिल कर गाने, गुनगुनाने और तमाम मुस्कुराते चेहरों को तस्वीरों में कैद करने के साथ।

कविता, शायरी और संगीत की महफ़िल से अलग यह कार्यक्रम इस रूप में भी देखा जाना चाहिए कि इतने लोगों को एक छत के नीचे तीन साल संजोए रखना अपने आप में बहुत बड़ी उपलब्धि है। यह कारवां जिसका रास्ता और मंज़िल केवल कविताओं से नपे हैं, साल दर साल बढ़ता ही जा रहा है और इसके लिए फाउंडर सौम्या और पोएट्स कलेक्टिव से जुड़े सभी कलाकार बधाई के पात्र हैं। उम्मीद है इस तरह के बहुत से आयोजन हमें आगे भी देखने को मिलते रहेंगे..।