कभी तो
इतने सारे शब्द, जज़्बात, अहसास
ज़हन में उमड़ आते हैं
कि लगता हैं पन्ने कम पड़ जाएंगे लिखते लिखते
उम्र छोटी पड़ जाएगी इनको जीते जीते
बदन में लहू भी खत्म हो जाएगा रिस्ते रिस्ते

और कभी…
कुछ नहीं… शून्य
खामोश हो जाते सारे शब्द,
खो जाते हैं जज़्बात,
सो जाते हैं अहसास सारे थक के..
ठंडा पड़ जाता है लहू,
शब्द चिपक जाते है बदन के पैरहन से…

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