‘Shakti’, a poem by Harshita Panchariya
समाज के कितने अपवादों से
आलोकित है अँधेरी कंदराएँ?
कहीं किसी सुदूर गाँव में
स्वयं शक्तिरूपेण अहिल्याऐं
प्रतीक्षित हैं तो…
तो जीवन पथ पर
अपनी प्राथर्नाओं से
अनेक सत्यवानों के प्राण बचाती
परजीवी कहलाने वाली
सावित्रियाँ उपेक्षित हैं।
भ्रम बनाएँ रखने के लिए
कुछ अपवादों का जीवित रहना
इसलिए भी आवश्यक था
ताकि जीवित रखी जा सकें
सभ्यता के संग्रहालय में
कुछ कठपुतलियाँ।
पर ‘शक्ति’ ध्यान रहे,
नौ दिन तुम्हें गर्भ में
रखने के बाद
यह समाज या तो
तुम्हें मार देगा
या अपवादों के पिटारे में
सजा लेगा
एक और नयी गुड़िया।
फिर एक और नयी ‘गुड़िया’ पाकर
तुम यह भूल जाओगी,
कि तुम्हें होना था
‘रुक्मणी’ की ही भाँति
ताकि पा सकती
मनोवांछित ‘वर’।
‘शक्ति’ का जागना
तब तक आवश्यक है
जब तक पितृसत्तात्मक
समाज में
‘लक्ष्मी और सरस्वती’
के होने का बोध
बोझ नहीं, मोक्ष हो।
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