अनुवाद: प्रेमचंद
अपने पहले पन्ने में मैंने तुम्हें बताया था कि हमें संसार की किताब से ही दुनिया के शुरू का हाल मालूम हो सकता है। इस किताब में चट्टान, पहाड़, घाटियॉं, नदियाँ, समुद्र, ज्वालामुखी और हर एक चीज, जो हम अपने चारों तरफ देखते हैं, शामिल हैं। यह किताब हमेशा हमारे सामने खुली रहती है, लेकिन बहुत ही थोड़े आदमी इस पर ध्यान देते या इसे पढ़ने की कोशिश करते हैं। अगर हम इसे पढ़ना और समझना सीख लें, तो हमें इसमें कितनी ही मनोहर कहानियाँ मिल सकती हैं। इसके पत्थर के पृष्ठों में हम जो कहानियाँ पढ़ेंगे वे परियों की कहानियों से कहीं सुंदर होंगी।
इस तरह संसार की इस पुस्तक से हमें उस पुराने जमाने का हाल मालूम हो जाएगा जब कि हमारी दुनिया में कोई आदमी या जानवर न था। ज्यों-ज्यों हम पढ़ते जाएँगे हमें मालूम होगा कि पहले जानवर कैसे आए और उनकी तादाद कैसे बढ़ती गई। उनके बाद आदमी आए; लेकिन वे उन आदमियों की तरह न थे, जिन्हें हम आज देखते हैं। वे जंगली थे और जानवरों में और उनमें बहुत कम फर्क था। धीरे-धीरे उन्हें तजरबा हुआ और उनमें सोचने की ताकत आई। इसी ताकत ने उन्हें जानवरों से अलग कर दिया। यह असली ताकत थी जिसने उन्हें बड़े-से-बड़े और भयानक-से-भयानक जानवरों से ज्यादा बलवान बना दिया। तुम देखती हो कि एक छोटा-सा आदमी एक बड़े हाथी के सिर पर बैठ कर उससे जो चाहता है करा लेता है। हाथी बड़े डील-डौल का जानवर है, और उस महावत से कहीं ज्यादा बलवान है, जो उसकी गर्दन पर सवार है। लेकिन महावत में सोचने की ताकत है और इसी की बदौलत वह मालिक है और हाथी उसका नौकर। ज्यों-ज्यों आदमी में सोचने की ताकत बढ़ती गई, उसकी सूझ-बूझ भी बढ़ती गई। उसने बहुत-सी बातें सोच निकालीं। आग जलाना, जमीन जोत कर खाने की चीजें पैदा करना, कपड़ा बनाना और पहनना, और रहने के लिए घर बनाना, ये सभी बातें उसे मालूम हो गईं। बहुत से आदमी मिल कर एक साथ रहते थे और इस तरह पहले शहर बने। शहर बनने से पहले लोग जगह-जगह घूमते-फिरते थे और शायद किसी तरह के खेमों में रहते होंगे। तब तक उन्हें जमीन से खाने की चीजें पैदा करने का तरीका नहीं मालूम था। न उनके पास चावल था, न गेहूँ जिससे रोटियाँ बनती हैं। न तो तरकारियाँ थीं और न दूसरी चीजें जो हम आज खाते हैं। शायद कुछ फल और बीज उन्हें खाने को मिल जाते हों मगर ज्यादातर वे जानवरों को मार कर उनका माँस खाते थे।
ज्यों-ज्यों शहर बनते गए, लोग तरह-तरह की सुंदर कलाएं सीखते गए। उन्होंने लिखना भी सीखा। लेकिन बहुत दिनों तक लिखने का कागज न था, और लोग भोजपत्र या ताड़ के पत्तों पर लिखते थे। आज भी बाज पुस्तकालयों में तुम्हें समूची किताबें मिलेंगी जो उसी पुराने जमाने में भोजपत्रों पर लिखी गई थीं। तब कागज बना और लिखने में आसानी हो गई। लेकिन छापेखाने न थे और आजकल की भाँति किताबें हजारों की तादाद में न छप सकती थीं। कोई किताब जब लिख ली जाती थी तो बड़ी मेहनत के साथ हाथ से उसकी नकल की जाती थी। ऐसी दशा में किताबें बहुत न थीं। तुम किसी किताब बेचने वाले की दुकान पर जा कर चटपट किताब न खरीद सकतीं। तुम्हें किसी से उसकी नकल करानी पड़ती और उसमें बहुत समय लगता। लेकिन उन दिनों लोगों के अक्षर बहुत सुंदर होते थे और आज भी पुस्तकालयों में ऐसी किताबें मौजूद हैं, जो हाथ से बहुत सुंदर अक्षरों में लिखी गई थीं। हिंदुस्तान में खास कर संस्कृत, फारसी और उर्दू की किताबें मिलती हैं। अकसर नकल करनेवाले पृष्ठों के किनारों पर सुंदर बेल-बूटे बना दिया करते थे।
शहरों के बाद धीरे-धीरे देशों और जातियों की बुनियाद पड़ी। जो लोग एक मुल्क में आस-पास रहते थे उनका एक दूसरे से मेल-जोल हो जाना स्वाभाविक था। वे समझने लगे कि हम दूसरे मुल्कवालों से बढ़-चढ़कर हैं और बेवकूफी से उनसे लड़ने लगे। उनकी समझ में यह बात न आई, और आज भी लोगों की समझ में नहीं आ रही कि लड़ने और एक-दूसरे की जान लेने से बढ़ कर बेवकूफी की बात और कोई नहीं हो सकती। इससे किसी को फायदा नहीं होता।
जिस जमाने में शहर और मुल्क बने, उसकी कहानी जानने के लिए पुरानी किताबें कभी-कभी मिल जाती हैं। लेकिन ऐसी किताबें बहुत नहीं हैं। हाँ, दूसरी चीजों से हमें मदद मिलती है। पुराने जमाने के राजे-महाराजे अपने समय का हाल पत्थर के टुकड़ों और खंभों पर लिखवा दिया करते थे। किताबें बहुत दिन तक नहीं चल सकतीं। उनका कागज बिगड़ जाता है और उसे कीड़े खा जाते हैं। लेकिन पत्थर बहुत दिन चलता है। शायद तुम्हें याद होगा कि तुमने इलाहाबाद के किले में अशोक की बड़ी लाट देखी है। कई सौ साल हुए अशोक हिंदुस्तान का एक बड़ा राजा था। उसने उस खंभे पर अपना एक आदेश खुदवा दिया है। अगर तुम लखनऊ के अजायबघर में जाओ, तो तुम्हें बहुत-से पत्थर के टुकड़े मिलेंगे जिन पर अक्षर खुदे हैं।
संसार के देशों का इतिहास पढ़ने लगोगी तो तुम्हें उन बड़े-बड़े कामों का हाल मालूम होगा जो चीन और मिस्रवालों ने किये थे। उस समय यूरोप के देशों में जंगली जातियाँ बसती थीं। तुम्हें हिंदुस्तान के उस शानदार जमाने का हाल भी मालूम होगा जब रामायण और महाभारत लिखे गए और हिंदुस्तान बलवान और धनवान देश था। आज हमारा मुल्क बहुत गरीब है और एक विदेशी जाति हमारे ऊपर राज्य कर रही है। हम अपने ही मुल्क में आजाद नहीं हैं और जो कुछ करना चाहें, नहीं कर सकते। लेकिन यह हाल हमेशा नहीं था और अगर हम पूरी कोशिश करें तो शायद हमारा देश फिर आजाद हो जाए, जिससे हम गरीबों की दशा सुधार सकें और हिंदुस्तान में रहना उतना ही आरामदेह हो जाए, जितना कि आज यूरोप के कुछ देशों में है।
मैं अपने अगले खत में संसार की मनोहर कहानी शुरू से लिखना आरंभ करूँगा।