‘Socho’, a poem by Viney

इतना जो सोच रहे हो तुम
तो सोचो
अगर किसी ने पूछ लिया तुमसे
कि बिखर रहा था जब समाज,
लूट रहे थे ताक़तवर
और नमक के पानी के सूखे खाँचे
आँखों के नीचे लिए हुए थे आम लोग
उतनी ही सूखी और बेढंगी-सी बस्तियों में,
तुम क्या तब भी सोच रहे थे।

और सोचते रहना तब तक
जब तक ना मिल जाए कोई जवाब,

और उसके बाद भी सोचना
कि जवाब कितने खोखले हैं।

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विनय लोहचब
मैं पीएचडी का छात्र हूँ, एसीएसआईआर-सीएसआईओ, चंडीगढ़ से। बाओमेडिकल इमेज प्रोसेसिंग मेरा विषय है। मेरी दो किताबें "एक बार तो मिलना था" व "भूल जाओगी क्या तुम भी मुझे" छप चुकी हैं। आप इन्हे आगे दिये गए लिंक से खरीद सकते है। https://www.amazon.in/dp/8194612284/ref=cm_sw_em_r_mt_dp_E1wqFb2PANG8Dhttps://www.amazon.in/Bhool-Jaogi-Kya-Mujhe-Hindi-ebook/dp/B08RCMTLQB/ref=sr_1_1?crid=14RS6NB2MUJ8P&dchild=1&keywords=bhool+jaogi+kya+tum+bhi+mujhe&qid=1626109969&sprefix=bhool+jao%2Caps%2C319&sr=8-1

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