‘Son Chiraiya’, a poem by Preeti Karn
यद्यपि पृथ्वी के लिए अहितकर
किन्तु अहाते के नन्हें मुस्कुराते पुष्प और
चहकती सोन चिरैया का
साझा ज्ञापन विधाता को
स्वीकार्य था।
सहमति उनकी भी
यही थी
लाख कोशिशों के
पश्चात भी मानसिकता नहीं
बदल पाया
अपनी ही कृतियों की।
अस्तित्व पर घिरते संकट से
ऊबकर
इस बार अहाते के फूल
कैक्टस होना चाहते हैं
और ‘सोन चिरैया’
सुनहरे पंखों का मोह त्याग
‘बाज़’!