‘Stree Aur Purush’, a poem by Anupama Mishra
स्त्री और पुरुष
क्या प्रेम कहानी के यही दो पात्र हो सकते हैं,
क्या प्रेम का परिष्कृत रूप
इन्हीं दोनों में समाहित और चित्रित होता है,
जहाँ स्त्री सुंदर हो
और पुरुष रूप का पुजारी,
जहाँ पुरुष बलवान हो
और स्त्री उसकी पौरुषता पर मुग्ध।
प्रेम कथा के कुछ पात्र ऐसे भी होते हैं
जिनका प्रेम स्थायी रूप से देह केंद्रित होता है
उस देह वंदना के राग में भावनाओं के
स्वरों का सर्वस्व लोप होता है,
शारीरिक लोलुपता को भी अक्सर
प्रेम की परिधि में परिक्रमा करते देखा है।
परन्तु यह सोचकर अत्यंत विह्वल सी हो जाती हूँ मैं,
क्या प्रेम का अर्थ इतना संकीर्ण हो सकता है।
उस प्रेम की पराकाष्ठा को मापने का यन्त्र कहाँ होता है
जहाँ स्त्री एक माँ बनकर सागर को भी
गहराई में लज्जित कर देती है,
एक भूख से टूटते इंसान को
भरपेट भोजन कराकर,
स्वयं को मिली हुई तृप्ति को क्या नाम देंगे।
और जब देखकर दुःख पराये का भी
ख़ुद की आँखें नम हो जाये
वो प्रेम का कौन-सा रूप है?!