कुछ पुरुष होते सबसे अलहदा
सदैव नाख़ुश
कोई स्त्री चाहे जान लड़ा दे
नहीं कर सकती उन्हें प्रसन्न
वे रहते सर्वदा दुःखी, खिन्न, क्लांत
सारी दुनिया से परेशान
जैसे दुनिया बनी ही हो उन्हें सताने को
मिला होता है उन्हें जैसे कोई शाप
प्रसन्न नहीं होने का
अहिल्या की भाँति पाषाण हो जाती हैं
उनकी नाज़ुक भावनाएँ
फिर वे दूसरों की भावनाओं को कैसे समझें
लेते रहते अपनी खिन्नता का बदला औरों से
ऐसे पुरुष आत्मश्लाघा से ग्रसित
होते अक्सर पूर्णतावादी
ख़ुद में हो लाख अपूर्णता और ऐब
चाहते दूसरों से सबकुछ उत्तम
उन पर होता जिस कलुष का साया
उससे मुक्त कर सकती कोई
मर्यादा स्त्रियोत्तम ही
पर स्त्रियाँ अवतार नहीं लेती
फिर उन्हें शाप मुक्त कौन करे?