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किसान – पन्द्रह लघु कविताएँ
Poems: Pratap Somvanshi
एक
एक ऐसा बकरा
जिसे पूरा सरकारी अमला
काटता खाता
सेहत बनाता है
और वह
दूसरों के लिए
चारा उगाता है
चारा बन जाता है
दो
कुनीतियों की डायन
अपने ही बच्चे खाती...
हरहू
'Harahu', a poem by Anupama Mishra
उबला हुआ मौसम
सीने में खौलता लहू,
अबकी बार जो बरसात ना हुई
लटकेगा पेड़ से
एक और हरहू।
पिछली बरस जब बरसी थी...
किसान
हेमन्त में बहुदा घनों से पूर्ण रहता व्योम है
पावस निशाओं में तथा हँसता शरद का सोम है
हो जाए अच्छी भी फ़सल, पर लाभ कृषकों...
व्यस्तता
साहेब से मिलने किसान आया है
साथ में रेहु मच्छली भी लाया है
साहेब व्यस्त हैं कुछ लिखने-पढ़ने में
बीच-बीच में चाह की घूंट भी ले लेते...
बस इतना
'Bas Itna', a poem by Abdul Malik Khan
मैंने कब कहा
कि मुझे कबाब बिरियानी
और काजू किशमिश का कलेवा दो
तीखी सुगन्ध से सराबोर सतरंगी पोशाक दो,
मैंने...
हल चलाने वाले का जीवन
'Hal Chalaane Wale Ka Jeewan', an essay by Sardar Puran Singh
हल चलाने वाले और भेड़ चराने वाले प्रायः स्वभाव से ही साधु होते हैं।...