मनुष्य बने रहने की ज़्यादा तरकीबें नहीं बची हैं मेरे पास
बस मैं कभी-कभी
गैंतियों तले गिड़गिड़ाती ज़िन्दगियों पर रो लेती हूँ
या फिर ये
कि मृत्यु का भौंडा उत्सव मनाता होमोसेपियन
अभी भी भयभीत नहीं कर पाता मुझे
मैं मनुष्य बनी रहूँ
इसलिए पदक्रम की तमाम सीढ़ियाँ तोड़कर
समतल करना चाहती हूँ
मनुष्यता का आँगन
कि हरहराकर गिर पड़े
सबसे ऊपरी पायदान पर खड़ा
मेरा ही कोई
पूर्वज, पड़ोसी, इष्ट या सखा
मनुष्य बने रहने के लिए
मैं उखाड़ती रहती हूँ
वो सारी देहरियाँ
जिन्हें लाँघते हुए
अटककर गिर पड़ती हैं स्त्रियाँ
और काट दी जाती हैं
देहरियों के बीचोबीच
मैं कभी-कभी
कटी हुई स्त्रियों को उनके पैर उठाकर देती हूँ
कि वो जोड़ लें उन्हें धड़ के साथ
और भाग निकलें
यहाँ से
इतने से भी बात न बनी
तो मैं निकाल लाऊँगी
घूरती आँखों को कोटरों से
और रख दूँगी
उन्हीं स्टापू खेलती बच्चियों की हथेलियों पर
कंचों की तरह
या कभी उलट दूँगी
पड़ोस के प्लॉट में कचरा बीनते साहिब ए आलम का बोरा
किसी आलीशान लिविंग रूम में
और आते में भर लाऊँगी
किताबें, चप्पलें और रोटियाँ
वहाँ से
देखना
मैं यही करूँगी
एक दिन
क्योंकि
मनुष्य बने रहने की चंद ही तरकीबें बची हैं
अब मेरे पास…