‘Tumhari Dhoop Mein’, a poem by Dayanand Roy

तुम्हारी धूप में कुछ देर टहलने के बाद,
दिल में प्रेम उमड़ता है और दिमाग़ में कविता,
इससे पहले कि मैं उन्हें लिखूँ,
मैं शब्दों को ग़ौर से देखना चाहता हूँ;
बिल्कुल तुम्हारी तरह
जिससे बिठा सकूँ,
शब्द और अर्थ में संयोजन,
कई बार ऐसा करते हुए
अर्थांतर के भय से,
मैंने कई कविताएँ अपनी जेब में रख दी हैं
एक पुराने रुमाल में,
जिसमें शब्द तुम्हारी तरह तह किए रखे हैं,
अब मैं उन्हें खोलना चाहता हूँ,
जिससे लिख सकूँ,
एक नयी कविता,
सुबह की धूप में
पीली, साँवली,
सुनहली धूप में ‘बावरा अहेरी’।

Previous articleमाँ का दुःख
Next articleजय श्रीराम

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here