‘Uchchaaran’, a poem by Abhishek Ramashankar
जब कुछ भी ना हो पढ़ने को
कविताएँ पढ़ना
जो मैंने लिखी हैं
तुम्हारे लिये
मैंने सब कुछ लिखना छोड़
तुम्हें लिखा है :
ओस और घास और पत्ती और फूल और धरती और बारिश और समंदर और संगीत।
ओस जो धरती के बदन से लिपटी हुई
घास की नोक पर टिकी है
घास जिसे धरती का सबसे अधिक मोह है
पत्ते और फूल धरती पर यूँ झड़कर नहीं गिरते
धरती का मोह, गुरुत्वाकर्षण से बड़ा है
बारिश ईश्वर का कुल्ला है,
समंदर ग़रारे का पानी।
हम पृथ्वी के दो छोर हैं
जो कभी नहीं मिलते;
इंतज़ार एक बिछौना है
क्षितिज जिसका ओढ़ना है
हमें रंग नहीं जोड़ते
इंद्रधनुष जोड़ता है,
जैसे मिलन का आभास भर हो
आसमान का धरती से
वैसे ही हम मिले
एक दूसरे से।
जैसे पानी का झांसा भर हो
रेगिस्तान की सफ़ेद चिलचिलाहटों में
वैसे ही हम खो गये,
प्रेम, वास्तविकता में
धुंधला क्षितिज नहीं रचता;
मनोरम मृगतृष्णा रचता है।
मेरे होंठ करते हैं तुम्हारे नाम का स्पर्श
हृदयतट पर जलतरंग बज उठते हैं
अगर प्रेम की कोई धुन है तो
वो – ‘धक-धक’ है
जिस दिन मैं तुम्हें ना उच्चारूँ
मर जाऊँगा
मैं मरना नहीं चाहता।
तुम हृदयगति के अंतराल पर बजता ताल हो
मुझे तुम्हारे तट पर सोना है।