जीवन में आया प्रकाश
तिमिर छँट रहा निसित, अब हो रहा निराशा का ह्रास
एक कोमल सी किरण ले आई आस
अब मिल रही वसुधा भी मुझसे ममता के साथ
क्यूँ धुल रहा है मन चाँदनी में आज
कौन आ रहा लेकर जीवन का उल्लास,
जीवन में छाया प्रकाश
क्यूँ अब नयन द्वार करूँ बंद
क्यूँ हो जाऊं निराश
क्यूँ न नाचे मन मयूर अब दिन रात
कल्पना का लोक बन रहा यथार्थ
प्रेम का आलोक बरसा
धुल गया भय त्रास
सभी स्वप्न खिलने लगे
बह चली शीतल मृदुल बयार
सुगंधित हो रहा जीवन
प्रफ्फुल्लित हो गया आत्मोपवन
कैसे मन ये मेरा पिघल कर
बन गया प्रकाश।

Previous articleरात की चादर
Next articleनीरवता
अनुपमा मिश्रा
My poems have been published in Literary yard, Best Poetry, spillwords, Queen Mob's Teahouse, Rachanakar and others

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here