‘Uphaar’, a poem by Rakhi Singh

संसार के शब्दकोश के सबसे मधुर शब्दों में शामिल है,
उपहार

मुझे गुलाब देने या लेने से अधिक रुचि
गुलाब का पौधा लगाने में है
ऐसा जाने कितनी बार,
कितने स्थानों पर कहा हो मैंने
कभी किसी सामान्य बातचीत में तुमसे भी कही गई
यह बात इतनी औपचारिक रही होगी
कि मेरा कहना, मुझे स्मरण नहीं

तुम गुलाब भेजते तो मुझे खीझ होती
मैसेज भेजना मेरी खिझलाहट का चरम होता
तुम्हारे फ़ोन से मैं असहज हो जाती

तुमने गुलाब का पौधा भेजा
ऐसा पहली बार हुआ था
पहली बार होना, हर बार
हरसिंगार होता है
सुगन्धित होता है
गहरा होता है
श्वास में समाते स्पर्श सा गहरा
डार्क चॉकलेट सा गहरा
कण्ठ में घुल रही मिठास सा गाढ़ा

इस पौधे पर किस रंग के गुलाब उगेंगे
मैं नहीं जानती
पर अभी मेरे अचरज का रंग गुलाबी है
बेबी पिंक जानते हो न!
वही गुलाबी

इस उपहार के प्रतिउत्तर में तुम्हें क्या दूँ?
शुक्रिया तो बिल्कुल नहीं!
इस मुलायम अहसास को
बोझिल करने का दुःसाहस मुझमें नहीं

मुस्कान भेजती हूँ
इमोजी वाले मुखौटे नहीं
असली मुस्कुराहट
तुम्हें अनुमति है
तुम चाहो तो आज
स्माइल डे मना लेना

इस पौधे का खिला पहला पुष्प भेजूँगी
उस दिन हम
‘रोज़ डे’ मनाएँगे।

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