‘Vidhata Ghar Na Chhoote’, a poem by Asheesh Kumar Tiwari

किसी राष्ट्र से निकाले गए जनसमूह
को शरण कौन दे
विधाता!
किसी को भूमिहीन न करना
यदि भूमिहीन करना तो गृहविहीन न करना
और गृह न भी रहे
किंतु परिवार कभी न छूटे
ऐसी आवाज़ एक घर के आँगन से
एक औरत की थी

विस्थापन की पीड़ा मनुष्यों ने
समूहों में झेली है
पर पूरे विश्व की आधी आबादी
पिता के घर से हर रोज़
चुन-चुनकर विस्थापित की जाती है
उनकी पीड़ा की सामूहिक आवाज़
आज तक न गूँज सकी।

इनके विस्थापन को विस्थापन माना ही न गया
विदा होती बेटी को
समाज की व्यवस्था के लिए
विस्थापन चुनना पड़ा।

इस आधी आबादी के
आँसुओं और चीख़ को
एक-एक बेटी के हिस्से में डालकर
टुकड़ों में बाँट दिया गया।

वो ऐसा विशाल वृक्ष बनती हैं
जिसकी जड़ पिता के यहाँ
कटी पड़ी है
और
बिना जड़ की विशाल शाखाएँ
दूसरे परिवार को शीतल कर रहीं
ऐसी गज़ब की प्राण-शक्ति
ओह! बेटियों!
ये विस्थापन का दर्द
तुम्हारे हिस्से में कैसे आ गया….

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आशीष कुमार तिवारी
जन्म : 20 मार्च 1993, इलाहाबाद। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में आधुनिक हिंदी कविता पर शोधरत। 2022 में प्रकाशित पहला काव्य-संग्रह 'लौह-तर्पण' वैभव प्रकाशन, रायपुर, छ. ग. से। 'अक्षर पर्व', 'छत्तीसगढ़ मित्र', 'देशबन्धु दैनिक अखबार', 'वागर्थ', 'समकालीन जनमत', 'हिमांजलि', 'कथा', 'अकार अंक 55', 'बनास जन' अंक 38 व 'पक्षधर' पत्रिका में कविताएं प्रकाशित। मो. 9696994252 7905429287 ईमेल. [email protected]

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