‘Waqt Ki Meenar Par’, by Shambhunath Singh
मैं तुम्हारे साथ हूँ
हर मोड़ पर संग-संग मुड़ा हूँ।
तुम जहाँ भी हो वहीं मैं,
जंगलों में या पहाड़ों में,
मंदिरों में, खंडहरों में,
सिन्धु लहरों की पछाड़ों में,
मैं तुम्हारे पाँव से
परछाइयाँ बनकर जुड़ा हूँ।
शाल-वन की छाँव में
चलता हुआ टहनी झुकाता हूँ,
स्वर मिला स्वर में तुम्हारे
पास मृगछौने बुलाता हूँ,
पंख पर बैठा तितलियों के
तुम्हारे संग उड़ा हूँ।
रेत में सूखी नदी की
मैं अजन्ताएँ बनाता हूँ,
द्वार पर बैठा गुफ़ा के
मैं तथागत गीत गाता हूँ,
बोध के वे क्षण, मुझे लगता
कि मैं ख़ुद से बड़ा हूँ।
इन झरोखों से लुटाता
उम्र का अनमोल सरमाया,
मैं दिनों की सीढ़ियाँ
चढ़ता हुआ ऊपर चला आया,
हाथ पकड़े वक़्त की
मीनार पर संग-संग खड़ा हूँ।
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