‘Zaroori Hai Prem Karte Rehna’, poem by Mahima Shree

1

जब कभी हम मिलें
मुझे हर वो दरख़्त, चिड़िया, तितली
औ उन सारे जंगली फूलों के नाम बताना
जो तुम्हारी उदास शामों में
जुगनू की तरह नुमाया थे
तमाम उलझनों को सुलझाने का
शायद अनजाने ही कोई सिरा हाथ आ जाए।

2

पहाड़ अपने गीत झरनों को सौंपते आए हैं
सैलानी सोचते हैं-
‘झरने कितना सुंदर गाते हैं।’

3

शब्दों की पगडण्डियों पर चलकर देखा
कई बार ये भटकाती हैं,
उलझाती भी हैं,
एक प्रेम ही है जो बचा ले जाता है…
अत: ज़रूरी है प्रेम करते रहना!

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महिमा श्री
रिसर्च स्कॉलर, गेस्ट फैकल्टी- मास कॉम्युनिकेशन , कॉलेज ऑफ कॉमर्स, पटना स्वतंत्र पत्रकारिता व लेखन कविता,गज़ल, लधुकथा, समीक्षा, आलेख प्रकाशन- प्रथम कविता संग्रह- अकुलाहटें मेरे मन की, 2015, अंजुमन प्रकाशन, कई सांझा संकलनों में कविता, गज़ल और लधुकथा शामिल युद्धरत आदमी, द कोर , सदानीरा त्रैमासिक, आधुनिक साहित्य, विश्वगाथा, अटूट बंधन, सप्तपर्णी, सुसंभाव्य, किस्सा-कोताह, खुशबु मेरे देश की, अटूट बंधन, नेशनल दुनिया, हिंदुस्तान, निर्झर टाइम्स आदि पत्र- पत्रिकाओं में, बिजुका ब्लॉग, पुरवाई, ओपनबुक्स ऑनलाइन, लधुकथा डॉट कॉम , शब्दव्यंजना आदि में कविताएं प्रकाशित .अहा जिंदगी (साप्ताहिक), आधी आबादी( हिंदी मासिक पत्रिका) में आलेख प्रकाशित .पटना के स्थानीय यू ट्यूब चैनैल TheFullVolume.com के लिए बिहार के गणमान्य साहित्यकारों का साक्षात्कार

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