ऐसा क्यों होता है?
ऐसा क्यों होता है?

उमर बीत जाती है करते खोज
मीत मन का मिलता ही नहीं
एक परस के बिना हृदय का कुसुम
पार कर कितनी ऋतुएँ
खिलता नहीं

उलझा जीवन सुलझाने के लिए
अनेकों गाँठें खुलतीं
वह कसती ही जाती
जिसमें छोर फँसे हैं

ऊपर से हँसने वाला मन अंदर ही अंदर रोता है
ऐसा क्यों होता है?
ऐसा क्यों होता है?

छोटी-सी आकाँक्षा मन में ही रह जाती
बड़े-बड़े सपने पूरे हो जाते सहसा
अन्दर तक का भेद
सहज पा जाने वाली दृष्टि
देख न पाती
जीवन की संचित अभिलाषा
साथ जोड़ता कितने मन पर
एकाकीपन बढ़ता जाता
बाँट न पाता
कोई से सूनेपन को
हो कितना ही गहरा नाता

भरी-पूरी दुनिया में भी मन ख़ुद अपना बोझा ढोता है
ऐसा क्यों होता है?
ऐसा क्यों होता है?

कब तक यह अनहोनी घटती ही जाएगी
कब हाथों को हाथ मिलेगा
सुदृढ़ प्रेममय
कब नयनों की भाषा
नयन समझ पाएँगे
कब सच्चाई का पथ
काँटों भरा न होगा

क्यों पाने की अभिलाषा में
मन हरदम ही कुछ खोता है!
ऐसा क्यों होता है?
ऐसा क्यों होता है?

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कीर्ति चौधरी
कीर्ति चौधरी (जन्म- 1 जनवरी, 1934, नईमपुर गाँव, उन्नाव ज़िला, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 13 जून, 2008, लंदन) तार सप्तक की मशहूर कवयित्री थी। साहित्य उन्हें विरासत में मिला था। उन्होंने "उपन्यास के कथानक तत्त्व" जैसे विषय पर शोध किया था।

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