किताब: ‘अलगोज़े की धुन पर’
लेखिका: दिव्या विजय
टिप्पणी: देवेश पथ सारिया

अभी किण्डल पर दिव्या विजय का पहला कहानी संग्रह ‘अलगोज़े की धुन पर’ पढ़कर समाप्त किया। समकालीन हिन्दी कहानी का गम्भीरतापूर्वक अध्ययन मैंने साल-भर पहले आरम्भ किया। इसलिए अपने लिखे को समीक्षा न मानकर मैं पाठकीय टिप्पणी कहना पसन्द करूँगा।

‘अलगोज़े की धुन पर’ युवा कथाकार दिव्या विजय के अब तक प्रकाशित दो कहानी संग्रहों में से पहला कहानी संग्रह है। इस संग्रह की कहानियों का मूल स्वर प्रेम है। यहाँ प्रेम उस तरह नहीं घटित होता, जैसा इन दिनों की प्रेम कविताओं में देखने को मिलता है। दिव्या की कहानियों का प्रेम एकल संयोजकता की सीमाएँ लाँघता है और वह इतने दक्ष और तार्किक ढंग से प्रस्तुत किया गया है कि सम्भव है कि आप पूर्वाग्रह त्यागकर आश्वस्त हो जाएँ कि यह अनैतिक नहीं है। संग्रह में दो दफ़ा इशारों-इशारों में प्रेम लैंगिक सीमा की दहलीज़ आहिस्ता ही सही, पार करता है—संग्रह की पहली ही कहानी में दोनों नायिकाओं का चूमना, एवं दूसरी कहानी में नायिका का यह सोचना कि उसके चारों प्रेमी आपस में एक-दूसरे के अच्छे प्रेमी हो सकते थे।

पहली कहानी में—जो कि संग्रह की शीर्षक कहानी भी है—एक व्यक्ति की पूर्व और वर्तमान प्रेमिका की भेंट होती है। उम्र की भिन्नता और उसी प्रेमी के साथ संलग्नता और बिछोह के भिन्न पड़ाव पर होते हुए भी वे दोनों वस्तुतः इस मायने में एक-सी होती हैं कि वे एक-दूसरे में अपने प्रेमी और परिचित प्रेम का अंश ढूँढ रही होती हैं। कुछ भी खो न देने की चाह में वे एक-दूसरे जैसी बन जाना चाहती हैं। दोनों के बीच चतुर डाह के क्षण आते हैं जो कड़वे बिल्कुल नहीं होते और अगले ही पल सद्भाव की लहर चली आती है।

‘प्रेम पथ ऐसो कठिन’ कहानी एक स्त्री की अंतर्व्यथा को व्यक्त करती है। धीमे संगीत की तरह आरम्भ हो यह कहानी उस आयाम तक पहुँचती है जहाँ पाठक और पाठक के भीतर उपजा दर्शक अनुनाद की स्थिति में होते हैं। ऐन चरमावस्था पर यह कहानी समाप्त हो जाती है। कहानी में नायिका के एक साथ चार प्रेम प्रकरणों की संगति दरअसल ऑर्केस्ट्रा की संगति जैसी है। लेखिका ने इस कहानी को ख़ूब निभाया है। थोड़ा भी इधर-उधर होने पर इस कहानी का सन्तुलन बिगड़ जाने का ख़तरा था।

‘फिसलते फ़ासलों की रेत घड़ी’ मुझे अन्य कहानियों की अपेक्षा औसत लगी। इस कहानी को और गहराई दी जा सकती थी। कहानी के अंत में स्टार फ़िश से तुलना कर कही गई बातें ज़रूर मुझे पसन्द आयीं।

‘बनफ़्शई ख़्वाब’ कहानी, बहुत कुशलता से गढ़ी गई कहानी है। इस कहानी में न केवल कहानी बल्कि कविता के अवयवों का भी लाजवाब प्रयोग किया गया है। ‘बनफ़्शई ख़्वाब’ को इस सुख के लिए पढ़ा जाना चाहिए। इस कहानी से कुछ पंक्तियां देखिए—

“फ़ुटबॉल की जगह एक सफ़ेद धब्बा उसे उछलता हुआ दिखायी दे रहा था। वह उसी धब्बे के पीछे भागने लगी, धब्बा एक झील में जा गिरा। उसने झील में जाने के लिए क़दम बढ़ाया मगर तुरन्त पीछे ले लिया। उसने अपने बूट्‌स उतारे और झील में पैर डुबो दिए। ठण्डा पानी पहली बार में नश्तर की तरह चुभा। उसके तलवे सिकुड़ने लगे लेकिन उसे ख़याल आया कि वह आने वाला है।”

‘मन के भीतर एक समन्दर रहता है’ कहानी बड़ी रोचकता से एक अनजान स्त्री और समुद्र में कूद आत्महत्या करने आए एक आदमी के बीच सम्वाद की कहानी है। युवक आत्महत्या करते समय भी यह नहीं चाहता कि उसके परिवारजन उसकी मृत्यु को आत्महत्या समझें। वह बचा लिया जाता है और पुनः आत्महत्या करने के लिए उद्यत होता है। अनजान स्त्री द्वारा उस युवक का हाथ थाम लेने से, जीवन के प्रति सार्थक सम्वाद से उसमें एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, वह जीवन की तरफ़ लौटने लगता है। अब इसे प्रेम कहा जाए, स्त्री-पुरुष के मध्य का आकर्षण या मानवता का नैसर्गिक जादू, यह पाठक की समझ पर है।

‘परवर्ट’ कहानी एक तरह से देखा जाए तो संग्रह की दूसरी कहानी ‘प्रेम पंथ ऐसो कठिन’ का ही पुरुषीय विमा में विस्तार है। इस कथा का नायक एक ऐसा आदमी है जिसे बार-बार प्रेम में पड़ जाने की आदत है। उसका चेहरा लटक गया है, ज़ाहिर है कि वह अधेड़ हो चुका है, तब भी स्त्रियाँ उसके प्रेम में पड़ती रहती हैं और वह स्त्रियों के। कहने को वह बौद्धिक स्त्रियों को पसन्द करता है, पर जब कोई स्त्री बहुत सुन्दर हो तो वह अपनी इस दृढ़ता से फिसल जाता है। कुल मिलाकर उसके पास प्रेम के अनगिनत कारण हो सकते हैं। उसकी पत्नी ने इस बात को स्वीकार लिया है। सच्चाई पता चलने पर उसकी प्रेमिकाएँ अक्सर उसे दुत्कार देती हैं। स्त्रियों और प्रेमालाप के प्रति उसकी सहज उत्सुक दृष्टि के कारण आस-पास का समाज उसे परवर्ट की संज्ञा देता है। यहाँ भी लेखिका कथा के नायक के दृष्टिकोण से पाठक को सन्तुष्ट कर पाने में सफल रहती हैं।

‘नज़राना-ए-शिकस्त’ एक प्रेम कहानी नहीं है। यह संग्रह की अन्य कहानियों से भिन्न स्त्री विमर्श की कहानी है। ‘नज़राना-ए-शिकस्त’ अभिजात्य वर्ग में सन्निहित पुरुषवादी सोच और स्त्री दमन की कहानी है। एक स्त्री को अपने आतातायी पति को शिकस्त खिलाने के लिए मर जाना होता है, पाक दामन होते हुए भी बदचलन कहलाना होता है। कहानी की नायिका को अपना पसन्दीदा रंग सफ़ेद मृत्यु के बाद नसीब होता है—कफ़न के रूप में। उसका पति, पत्नी की दुर्घटना में जली हुई लाश देखकर सबसे पहले यह सोचता है कि किस-किसने उसकी पत्नी को नग्न अवस्था में देखा होगा और अगले ही पल यह सोचकर सन्तुष्ट होता है कि कोयला और राख बन चुकी इस देह में देखने लायक़ बचा ही क्या है। स्त्री के होंठ जलने पर भी मानो व्यंग्य में मुस्कुराते हैं—

“लाश हुए जिस्म में वे मुस्कुराते हुए होंठ ज़िन्दगी की तरह चस्पाँ थे। ऐसे तो वह तब भी नहीं मुस्कुराती थी जब ज़िन्दा थी।”

‘बिट्टो’ कहानी की पृष्ठभूमि शुरुआत में मुझे पुराने ढंग की कहानियों जैसी लगी और मुझे शुरुआत में लगा कि मुझे यह औसत लगेगी। पर, आश्चर्यजनक रूप से ‘बिट्टो’ कहानी पूरे संग्रह में मेरी सबसे पसन्दीदा कहानी रही। एक छोटे से क़स्बे की प्रकृति प्रेमी लड़की जो पौधों से, फूलों से, चिड़ियों से, और तितलियों आदि से चहककर प्रेम करती है, कच्ची उम्र के प्रेम में ठगे जाने पर अपनी सारी चंचलता खो देती है। छोटे शहर की संकीर्ण सोच के चलते उसे ताने सुनने पड़ते हैं और असमय ही वह एक उदास औरत में तब्दील हो जाती है। कहानी की नायिका तो वही है। साथ ही, कहानी में है एक किराएदार, जिसे नायक की अपेक्षा एक दर्शक या विश्लेषक मात्र कहा जाता, यदि वह बिट्टो को फिर से हँसाने का जतन न कर जाता।

लड़कियों को अपने प्रेम में फँसा इस्तेमाल करने वाले लड़के हर पीढ़ी, हर शहर, हर क़स्बे में होते हैं। भोली-भाली लड़कियाँ कुंदन जैसे अच्छे लड़कों को छोड़कर अखिल जैसे बुरे लड़कों का चुनाव करती हैं क्योंकि बुरे लड़कों को लड़कियों को आकर्षित करने के हथकण्डे पता होते हैं। अखिल एक ऐसा ही एक लड़का है, जो स्त्रियों के प्रति निम्नतम स्तर की सोच रखता है। अंत में उस जादूगर का पतन होता है, और कहानी को शीर्षक मिलता है ‘एक जादूगर का पतन’। कितनी ही लड़कियाँ इस तरह के धोखों के बाद अपने जीवन में आगे बढ़ जाती हैं। पर कोई-कोई ऐसी भी होती हैं जो उसी मोड़ पर ठिठककर अपना जीवन बिता देती हैं। माया एक ऐसी ही लड़की है।

संग्रह की अंतिम कहानी ‘प्यार की कीमिया’ ऐश्वर्य, जुए और अय्याशी के शहर लास वेगास में घटित होती है। लास वेगास में अलग-अलग स्तर की वेश्याओं के जीवन की पड़ताल करती हुई यह कहानी मुख्य पात्र कार्ला और एक घुमक्कड़ युवक एल्फ़्रेड पर केंद्रित हो जाती है। एल्फ़्रेड, कार्ला के वेश्या होने की सच्चाई जानकर भी उसे मन से चाहने लगता है। कार्ला के स्ट्रिप डांस में भी उसे विशुद्ध कला नज़र आती है। इन पंक्तियों से एल्फ़्रेड के प्रेम की थाह पायी जा सकती है—

“अगर देह का मूल्य लगाकर उसे छुआ जा सकता है तो क्या उसमें रहने वाले हृदय को जानकर उससे प्रेम नहीं किया जा सकता?”

कुछ उतार-चढ़ाव से गुज़र यह कहानी अपने अंजाम तक पहुँचती है। एक अच्छे कहानी संग्रह का सुखद अंत होता है।

'देस: देशज सन्दर्भों का आख्यान'

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देवेश पथ सारिया
हिन्दी कवि-लेखक एवं अनुवादक। पुरस्कार : भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार (2023) प्रकाशित पुस्तकें— कविता संग्रह : नूह की नाव । कथेतर गद्य : छोटी आँखों की पुतलियों में (ताइवान डायरी)। अनुवाद : हक़ीक़त के बीच दरार; यातना शिविर में साथिनें।