‘Alikhit Chitthiyaan’, a poem by Mridula Singh
तुम्हारे जन्म की
तारीख़ और जगह
नहीं जानती थी
पर तब भी पता था
कि इस दुनिया में तुम हो,
बनफूलों का
कुनमुना के आँख खोलना
ठूँठ का हरियाना
और तितलियों के पंखों पर
पीले रंग की चमक में
तुम्हारा ही होना था
उधर से आती हवा
बाँचती थी
तुम्हारी अलिखित चिट्ठियाँ
कि तुम्हारे देश में भी
इन दिनों जमी है धुन्ध
इसी धरती और
आकाश के बीच
गुज़रती किरणो में
बुना था तुमने
कोई भोला गुलाबी सपना
कहीं दूर छत पर कभी
कटती पतंगों को
तुमने सम्भाला होगा
बांधा होगा मज़बूत मांझे से
और उड़ा दिया होगा
उसे मेरी दिशा में
दुआओं की तरह
मिलना हुआ है तुमसे
इसी धरती पर
जहाँ नदी की दो धाराएँ मिलती हैं
वह पल नियोजित नहीं,
प्राकृतिक था
क़ुदरत के बाक़ी नियमों की तरह…
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