धरती सूखकर रूठ जाती है। आसमान, घबरा उठता है अपनी प्यारी धरती के रूठने पर। क्षितिज पर आसमान को धरती के दिल पर सिर रखकर रोते हुए देखा गया है। कोई कह रहा था कि आसमान असल में धरती के सीने पर कान लगाकर उसके सारे दुःख सुनता रहता है। बिजली चमकती है, मालूम होता है धरती के दुःख से आसमान कराह रहा हो।
अब आसमान की आँखें भर आयी हैं शायद! आसमान रात भर रोएगा। धरती हवाओं की हथेली से उसे सहला कर, पुचकारकर चुप कराएगी।
रो रोकर आसमान का काला पड़ा चेहरा कल सुबह दिल हल्का होने पर थोड़ा ज़्यादा आसमानी होगा। रोने के बाद जब कोई अपना बड़े प्रेम से मनाता है तो आँसू भरे चेहरे पर एक भोली मुस्कान सज जाती है।
कल सूरज ज़्यादा साफ़ उगेगा। आसमान के रो लेने भर से, धरती पर सृजन की नई सम्भावना उत्पन्न होगी। धरती आसमान को खुश देख कर प्रेम से हरी भरी हो जाएगी। और फिर दोनों इंतजार करेगें अगली लड़ाई का।
प्रेम कुछ यूँ किया जाता है जैसे ज़मीन को आसमान करता है। धरती पर इंसान, प्रेम करते हैं। पर क्या उनके आँसुओं का उद्देश्य अपने प्रिय का सृजन होता है?
क्या इंसान, अपने प्रिय को अपने-अपने आँसुओं से और उपजाऊ बना सकते हैं?
इंसानों को, प्रकृति से प्रेम करना सीखना चाहिए।