हम साइकिल सवार हैं
हम पहिए से राब्ता रखते हैं
उसके आविष्कार की मूल भावना के साथ
किसी ईंधन ने अभी नहीं लिया है
पहिए के उत्साह का स्थान हमारे हृदय में

हमसे कहा गया था
कि रास्ते पर हमारा दूसरा हक़ है
पैदल चलने वालों के बाद
फिर भी सड़क की पेचीदा गुत्थम ग्रंथियों में
पहले और दूसरे हक़ की वरीयता को कर दरकिनार
हमें माना गया कुचल दिए जाने लायक़
जैसे अभयारण्यों में छीन लिया जाता है
अभय घूमने का हक़ वन्यजीवों से
पर्यटकों से भरी जिप्सियों के द्वारा

हम साइकिल सवार हैं
हमारे पैरों को रटा होता है
रास्ते पर चढ़ाई और ढलान का मानचित्र
कब बचानी है ऊर्जा
कब चलानी है साइकिल एक रौ में, समतल सड़क पर
कब पिण्डलियों पर ज़ोर लगाना है
एक गणित जिससे मोटर और स्कूटर वाले
कभी बावस्ता नहीं हो पाते

हम साइकिल सवार हैं
वाहनों के साथ हम चलते हैं
सबसे बाएँ
या (देशान्तर में) सबसे दाएँ सड़क पर
पर्यावरण बचाने को वाहनों से पीछे छूट जाते हुए
इतनी-सी रियायत मिलती है हमें
या हम ख़ुद ले लेते हैं
कि सड़क पार करते समय
दुपहिया वाहनों के लिए बत्ती हरी होने से कुछ सेकण्ड पहले
ज़ेब्रा क्रॉसिंग की बत्ती हरी होने पर
पैदल सवारों के साथ कर लेते हैं पार सड़क
कभी-कभी
साइकल की सीट से उतरे बिना भी

हम साइकिल सवार हैं
हमारे भीतर स्कूली बच्चा
और पहिया बनाने वाला आदिम मनुष्य
अब भी हिलोरें मारता है!

देवेश पथ सारिया की कविता 'स्त्री से बात'

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देवेश पथ सारिया
हिन्दी कवि-गद्यकार एवं अनुवादक। पुरस्कार : भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार (2023), स्नेहमयी चौधरी सम्मान (2025)। प्रकाशित पुस्तकें : नूह की नाव (कविता संग्रह); स्टिंकी टोफू (कहानी संग्रह); छोटी आँखों की पुतलियों में (कथेतर गद्य); हक़ीक़त के बीच दरार, यातना शिविर में साथिनें (अनुवाद)। संपादन : गोल चक्कर वेब पत्रिका।