‘Dhikkaar’, a poem by Rahul Boyal

हमने लड़ने के लिए
अपने-अपने पक्ष चुने
हमने अपने-अपने विचार गढ़े
एक दूजे के तर्क सुने
मतभेदों को स्वीकारा
विविधताओं का स्वागत किया
हमने पृथक-पृथक संस्कार धरे
हमने सैंकड़ों त्रासदियाँ भोगीं
पर हम अर्हताओं के कथानक रहे
हमारे भीतर युगों के दु:ख थे
पर हम सुन्दरताओं के मानक रहे।

हमने दुनिया के भूगोल को ललकारा
हमने प्रेम में प्रतिष्ठा पायी
हमने वैश्विक ज़िम्मेदारियाँ उठायीं
किन्तु अपनी मिट्टी से प्यार करना नहीं छोड़ा
हमने नदियों का वरण किया
जीवन-कला में वैचित्र्य पाया
हम घावों को पढ़कर बड़े हुए
हमने चोटों से प्रतिवाद किया
हमने हर कालखण्ड को चुनौती दी
हमने तमाम घृणाओं को धूल चटायी।

फिर समय के एक टुकड़े ने स्वांग किया
हमें श्रेष्ठ व हीन के बीच में टाँग दिया
हम बेसिर-पैर की लड़ाइयों के पुरोधा हुए
हज़ारों अंवाछित युद्धों में सम्मिलित हुए
हम गर्व से फूलकर कुप्पा हुए
अपनी ही दृष्टि में योद्धा हुए
हमने धीरे-धीरे धैर्य खोया
हम विपाक भूले, वीर्य खोया
हमने वैकुण्ठ और स्वर्ग के फ़र्ज़ी स्वप्न देखे
हमने हठधर्मिता भोगी, हमने कृतघ्न देखे।

हमने परिष्कार से मुँह मोड़ा
हमने चिरपरिचित मार्ग छोड़ा
हमने बेशर्मी की हदें लाँघी, दाँत चिराये
हमने धूमिल किया अपने को, गरियाये
धिक्कार! हम धिक्कार की ध्वनि सुनते गये
ओह! प्रतिकार में हम भी यही दोहराते गये
अपने गीत भूलते रहे, बस गालियाँ गाते गये
धिक्कार! छि: छि:! थू -थू! मैं – मैं! तू- तू!

यह भी पढ़ें: राहुल बोयल की कविता ‘कवि नहीं थे, वे खाये-पिये-अघाये लोग थे’

Books by Rahul Boyal:

 

 

Previous articleमाँ को याद करते हुए
Next articleबे-ख़याल बैठा हूँ
राहुल बोयल
जन्म दिनांक- 23.06.1985; जन्म स्थान- जयपहाड़ी, जिला-झुन्झुनूं( राजस्थान) सम्प्रति- राजस्व विभाग में कार्यरत पुस्तक- समय की नदी पर पुल नहीं होता (कविता - संग्रह) नष्ट नहीं होगा प्रेम ( कविता - संग्रह) मैं चाबियों से नहीं खुलता (काव्य संग्रह) ज़र्रे-ज़र्रे की ख़्वाहिश (ग़ज़ल संग्रह) मोबाइल नम्बर- 7726060287, 7062601038 ई मेल पता- [email protected]

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here