‘Ek Khidki Ki Darkaar Hai’, a poem by Nidhi Agarwal

प्रेम में कोई संशय नहीं होता
जहाँ हो संशय वहाँ
प्रेम नहीं होता।

यूँ हृदय में कब होती है
कोई खिड़की कि
कोई स्वर गूँजा
और उचककर झाँक
जान ली सत्यता।
सो जब तुम कहते हो
तुम मुझसे प्रेम करते हो,
मैं बस तुम्हारी आँखों में ही
झाँक
उसे मान लेती हूँ सत्य।

हाँ, जानती हूँ
आँखों को हम सदा
हृदय का प्रतिरूप ही पाएँ
यह ज़रूरी भी नहीं,
किंतु कुछ परदों की
राज़दारी बनी ही रहे
बेहतर सदा यही होता।

जाने क्यों मेरे इस सुख में भी
तुमको कुछ बाधा है।
तुम उजागर करते हो
स्याह चेहरे,
बताते हो अनेकों क़िस्से,
उन क़िस्सों में तुम बतलाते हो ख़ुद को
ज्यों एक अबोध शिशु,
और स्त्रियाँ जाने किस स्नेहवश
तुमको दुलराती हैं।
सम्भवतः तुम जताते हो मुझे
अनेकों के जीवन में तुम्हारा
अतिविशिष्ट होना।
तुम भूल जाते हो
मैं भी एक स्त्री हूँ
समझ सकती हूँ स्त्री मन,
बिना स्नेह-पोषण के किसी स्त्री के मन में
कोई आकर्षण बड़ा नहीं होता।

तुम कहते हो कि
मैं न शोक करूँ क्योंकि
मुझ से बढ़कर तुमको नहीं है कोई
हो सच ही अबोध क्या
जो तुम यह समझे ही नहीं
कि प्रेम में यूँ हिस्सेदारी का
कोई स्थान नहीं होता

और जब जानते हो ये नज़दीकियाँ
दुखावेगीं मेरा दिल
जो तुम सच ही करते होते प्रेम तब
न बनने देते तुम ऐसे क़िस्से
या इन शापित क़िस्सों का वर्णन करते
तुम्हारे स्वर में…
कोई कम्पन तो हुआ होता।

और दुःख मुझे इसका नहीं कि
तुम मुझसे प्रेम नहीं करते,
दुःख यह है कि
यह सत्य जान अब मुझको
प्रेम पर ही विश्वास नहीं होता।

यह भी पढ़ें:

तसनीफ़ हैदर की कहानी ‘खिड़की’
फ़्रेंज़ काफ़्का की लघुकथा ‘गली की तरफ़ खुलती खिड़की’

Recommended Book:

Previous articleमैं ही हूँ
Next articleशक्ति और क्षमा
डॉ. निधि अग्रवाल
डॉ. निधि अग्रवाल पेशे से चिकित्सक हैं। लमही, दोआबा,मुक्तांचल, परिकथा,अभिनव इमरोज आदि साहित्यिक पत्रिकाओं व आकाशवाणी छतरपुर के आकाशवाणी केंद्र के कार्यक्रमों में उनकी कहानियां व कविताएँ , विगत दो वर्षों से निरन्तर प्रकाशित व प्रसारित हो रहीं हैं। प्रथम कहानी संग्रह 'फैंटम लिंब' (प्रकाशाधीन) जल्द ही पाठकों की प्रतिक्रिया हेतु उपलब्ध होगा।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here