‘Gunjan La’, a poem by Chandra Kunwar Bartwal

तेरा मन मेरा हो जाए, मेरा मन तेरा हो जाए,
मैं तेरे मन की बात सुनूँ, तू मेरे मन की सुन पाए!

खो जाएँ दुखों के अंधड़ में, जब हम विपरीत दिशाओं में,
मैं तुझे ढूँढता लौटूँ तब, तू मुझे ढूँढती फिर आए!

मेरी अपूर्णता को तेरी मंगलमय शोभा पूर्ण करे,
मेरे जीवन के घट तेरी आँखों की निर्मल कांति भरे!

मेरी चाहों के सागर पर, तू मौन चाँदनी बन फैले,
मेरी आशा के हिमगिरी पर, तू सूर्य किरण बन बिखरे!

मैं राह देखता हूँ तेरी, मुझको शुचि आकर तू कर जा,
जीवन की सूनी डाली को, तू नूतन शोभा से भर जा!

कोंपल ला, हरी पत्तियाँ ला, कोमल-कोमल पत्तों को ला,
गुँजन ला मेरे जीवन में, ओ सुरभित साँसों वाली! आ!

यह भी पढ़ें: चन्द्रकुँवर बर्त्वाल की कविता ‘तुमने क्यों न कही मन की’

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चन्द्रकुँवर बर्त्वाल
चन्द्र कुंवर बर्त्वाल (20 अगस्त 1919 - १९४७) हिन्दी के कवि थे। उन्होंने मात्र 28 साल की उम्र में हिंदी साहित्य को अनमोल कविताओं का समृद्ध खजाना दे दिया था। समीक्षक चंद्र कुंवर बर्त्वाल को हिंदी का 'कालिदास' मानते हैं। उनकी कविताओं में प्रकृतिप्रेम झलकता है।

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