‘Hashiye Ki Taqat’, a poem by Abhigyat
यह क्या है
मैंने बहुत देर तक
सोचा
जब किसी भी स्तरीकरण में वह नहीं बैठा
तो थक-हारकर मैंने कहा-
नहीं, यह निरस्त तो नहीं किया जा सकता
इसके होने का
अर्थ तो है ही
भले वह नहीं बैठता हो किसी भी तयशुदा विधा के ख़ाने में
तय किया इसे
कविता कह देते हैं
आख़िर तमाम निरस्त कर दी गई चीज़ों व कार्रवाइयों के सिवा
कविता में होता क्या है
और अगर कविता भी नहीं देती उन्हें स्थान
तो फिर कविता के होने का औचित्य क्या है
कविता
तमाम सूचियों से बाहर कर दिए गए क्रिया-कलापों की
एक लम्बी फ़ेहरिस्त ही तो है
वह हाशिया है
जहाँ कुछ न भी लिखा हो तो
बोलती हैं ख़ामोशियाँ
किन्तु जब कुछ लिखा होता है
तब वही तय करता है मूलपृष्ठ की विषयवस्तु की दिशा,
वही देता है निर्णय।
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