हाशिये की लड़कियाँ
प्रश्नचिन्ह की भाँति
हर किसी की
नज़र में उभरती हैं
एक सवाल बनकर,
हर हृदय में स्पंदित होते हैं
उनके लिए अनेक प्रश्न
अपने अंदर दृष्टिपात
करने की बजाय,
उन्हें हाशिये पर धकेल कर
हर सभ्यता मौन हो जाती है
आह!
इस सभ्यता के मौन के अंदर
जन्म लेने वाले
तूफ़ान से बेख़बर
वो लड़कियाँ सोती हैं
एक बेचैन नींद
मानो हर आहट आती हो
उन्हें नोचने के लिए
और देखती हैं
अधझपी आँखों से एक सुखस्वप्न
आकाश को मुठ्ठी में
भींचने का
मुझे बहुत भाती हैं
हाशिये पर खड़ी लड़कियाँ
जो मारती हैं हर पल
ख़ुद को
महज़ अपना अस्तित्व
बचाने के लिए!

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