‘Kavi, Keel Aur Kavita’, a poem by Anurag Anant
सबने नाव देखी
किसी ने नाव की देह में धँसी कीलें नहीं देखीं
इन्हीं कीलों ने नाव को नाव बनाया
बाढ़ में
जब डूब जाने का मौसम था
नाव ने
लोगों को बचाया
लोग नाव के शुक्रगुज़ार थे
नाव कीलों की आभारी
अब मैं नाव को कवि कहता हूँ
हिज्र को बाढ़ का मौसम
कील वो नाम है
जो कवि के हृदय में धँसा है
और रह-रहकर कविता लिख रहा है
जब हिज्र के मौसम में डूबने को होते हैं आप
कवि ही होता है जो आपको डूबने से बचा लेता है
मेरा मन करता है
अब मैं दावा करूँ, आप नाव पर बैठे किसी आदमी को देखेंगे
आपके ज़हन में कोई कविता गूँजेगी
और आप कवि का नाम याद करते हुए
अपने सब दुःख भूल जाएँगे!
यह भी पढ़ें: ‘मैं आसमान से एक तारे की तरह टूटा और प्रेमियों ने मुझे देखकर आँखें मूँद लीं’