‘Kavita Ek Chaku Hai’, a poem by Nand Kishore Acharya
[‘केवल एक पट्टी ने’ संग्रह से]
दर्पण नहीं है वह
जब चाहा देख लिया
अपना चेहरा जाकर
फूल भी नहीं वह कोई
रँगो-बू में जिसकी
डूबे ही रहो दिन-रात
कोई खिलौना भी नहीं
चाबी भरते ही चलने लगे
मन बहलाने की ख़ातिर
कविता एक चाकू है
गहरे तक धँसा
आत्मा में-
न मुमकिन रख पाना
जिसको,
निकालना
मर जाना निश्चय।
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