हमने मधुर स्मृतियों
और मीठी अनुभूतियों को
इन कठोर हाथों से, तुम्हारे लिए
हृदय से खींच बिखेरा है

हमारे लहू के एक-एक क़तरे ने
तुम्हारे खेत की बंजर भूमि को सींचा है
हमारे पसीने की एक-एक बूँद
तुम्हारी खानों की गहराई में टपकी है

हमने तुम्हारे खेत उपजाए
तुमने हमारे पेट पुलों से ढाँप दिए
हमने तुम्हारे बाग़ लहराए
तुमने काँटों से मार्ग भर दिया
हमने तुम्हारी अट्टालिकाएँ चिनीं
तुमने सूरज भी उनमें क़ैद किया

हमने अपने खुरदुरे हाथों से
पीट-पीट लोहा, कुदाल गढ़ा
तुमने हमारी कला को
हमारे हृदयों में झोंक दिया।

रजनी तिलक की कविता 'औरत औरत में अंतर है'

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