आसमान और धरती के बीच
छिड़े युद्ध में
पेड़ पृथ्वी के सिपाही हैं
जब कभी आसमान से गिरता है सैलाब
पेड़ ही बचाते हैं पृथ्वी के किनारे

मुझे नहीं पता
पेड़ों को किनारे कर
मनुष्य कैसे बचा पाएगा पृथ्वी का केंद्र।

2

मृत्यु के बाद भी
पथिकों के स्पर्श को याद रखते हुए
पेड़,
कभी चारपाई बने
कभी खिड़की-दरवाज़े
कभी पहिये और चप्पू

मनुष्यों के बीच से काटे जाने के बाद भी
वे नहीं भूल सके
मनुष्यों के साथ काटा गया वक़्त।

3

जैसे पेड़ों से गुज़रते हुए
याद आती है कविता
क्या वैसे ही
कविताओं से गुज़रते हुए भी
याद आती है
पौधे से पेड़ और पेड़ से पुस्तक बनने की यात्रा

एक पेड़ जैसे बदल जाता है कविताओं में
क्या कोई कविता भी धर सकती है
कई-कई पेड़ों का रूप?

शायद हाँ! शायद नहीं!
शायद कभी नहीं!

4

पेड़!
हमारी यात्राओं में साये की तरह शामिल रहे
हमारे दुःख में माँ की तरह सहारा देते रहे
हमारी ख़ुशी में
पिता की तरह झुलाते रहे अपनी शाखों पर
हमारे संगीत में और नृत्य में भी वही रहे सबसे क़रीब
जब हम मरने लगे तब भी
उन्होंने नहीं छोड़ा हमारा साथ

पेड़ प्रेमी नहीं हुए कि भूल जाते कोई कही हुई बात
वे पेड़ ही रहे और
उन्होंने याद रखा हमारे साथ रहने का अमिट वादा।

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शिवम चौबे
बहुत-बहुत ज़्यादा लिया, दिया बहुत-बहुत कम, मर गया देश, अरे जीवित रह गये तुम- मुक्तिबोध

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