आओ
आज फिर कविता लिखें
कविता में लिखें
प्रीत की रीत
…जो निभ नहीं पायी
या कि निभायी नहीं गई!

कविता में आगे
रोटी लिखें
जो बनायी तो गई
मगर खिलायी नहीं गई!

रोटी के बाद
कफ़न-भर
कपड़ा लिखें
जो ढाँप सके
अबला की अस्मत
ग़रीब की ग़रीबी!

आओ फिर तो
मकान भी लिख दें
जिसमें सोए कोई
चैन की साँस लेकर
बेघर भी तो
ना मरे कोई!

चलो!
अब लिख ही दें
सड़कों पर अमन
सीमाओं पर सुलह
सियासत में हया
और
जन-जन में ज़मीर!

ओम पुरोहित कागद की कविता 'सन्नाटों में स्त्री'

Book by Om Purohit Kagad:

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ओम पुरोहित 'कागद'
(5 जुलाई 1957 - 12 अगस्त 2016)

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