Poems: Gunjan Srivastava

1

बस थोड़ा और गड़ाना था
तुम्हें अपनी उँगलियों को
उसके सीने में
या घिसना था अपनी हथेलियों को
तब तक
उसे बाहों में भर
जब तक कि तुम पहुँच नहीं जाते
उस लड़की तक
जो अपने सीने और पीठ के
ठीक बीचोबीच रहती है
एक रूह बन!

2

वर्तमान को तुम मचोड़ सकते हो
बना सकते हो उस ख़ाली पन्ने से
नदी पार करने वाली नाव,
या फिर उड़ा सकते हो उसे
जहाज़ बना अपने आकाश में

भविष्य की दूर तक फैली
ख़ाली ज़मीं पर भी उगाये जा सकते हैं
एक स्वप्न के नन्हे पौधे से,
हक़ीक़त के हज़ार खिलखिलाते फूल।
एक बीज से वो फल जिसे तुम
सर्वाधिक पसंद करते हो।

पर ये अतीत
जिसे तुम इतिहास समझते हो
वो काग़ज़ पर लिखा तथ्य नहीं,
अतीत की क्रियाओं का सच है!
इसे तुम या फिर कोई भी
ग़लत लिख या बता सकता है
बदल नहीं सकता!

3

लिखो ऐसी कविता
जिसे समझ सकें
सिर्फ़ और सिर्फ़
समाज के कुछ बुद्धिजीवी

गुनगुना सकें बड़े विश्वविद्यालयों में
साहित्य के चंद शोधार्थी

या उच्चारित कर सकें जिसे सिर्फ़
कुछ साहित्यिक पण्डित

ताकि तुम बना सको
उनकी नज़रों में
एक गम्भीर और सम्वेदनशील
कवि की छवि,
उन मज़दूरों और महिलाओं
की पीड़ाओं पर लिख
जिन्हें तुम्हारे जटिल शब्द
समझ तक नहीं आते
और कहने को
जिनके तुम कवि हो!

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शिक्षा- जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय | पता- समस्तीपुर (बिहार)

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