आख़िरी प्याला
इस बात को पसन्द करो या मत करो
हमारे पास गिनती के तीन विकल्प होते हैं—
भूतकाल, वर्तमान और भविष्य
और दरअसल तीन भी नहीं
क्योंकि दार्शनिक कहते हैं
गुज़र चुका है भूतकाल
वह केवल स्मृति में है—
एक नोचे हुए गुलाब से
एक और पंखुड़ी नहीं खींची जा सकती
हमारी गड्डी में सिर्फ़ दो पत्ते बचे—
वर्तमान और भविष्य
और दो भी नहीं
क्योंकि हर कोई जानता है
कि वर्तमान का तो कोई अस्तित्व ही नहीं
वह भी एक तरह से भूतकाल बन जाता है
गुज़रा हुआ वक़्त
जैसे जवानी
संक्षेप में
हमारे पास बचा सिर्फ़ भविष्य—
मैं शराब का एक प्याला बनाता हूँ
उस दिन के लिए जो कभी नहीं आता
पर सिर्फ़ वही है
जिस पर हमारा बस है।
(अंग्रेज़ी अनुवाद: डेविड अंगर)
मदद
नहीं मालूम कि मैं कैसे यहाँ आ पहुँचा—
मैं ख़ुशी से दौड़ा जा रहा था
अपनी टोपी दाएँ हाथ में पकड़े
एक चमकती तितली का पीछा करता
जिसने मुझे प्रसन्नता से पागल कर दिया था
और अचानक! मैं अटककर गिर गया
मुझे नहीं मालूम कि बग़ीचे को क्या हुआ
बर्बाद हुआ पड़ा है यह
मेरी नाक और मुँह से ख़ून निकल रहा है
मुझे सच में नहीं मालूम कि क्या हो रहा है
मेरी मदद करो
या गोली मार दो मेरे सिर में।
(अंग्रेज़ी अनुवाद: मिलर विलियम्स)
युवा कवि
जैसा लिखते हो, लिखो
किसी भी शैली में
पुल के नीचे से बहुत ख़ून बह चुका है
इसी यक़ीन में
कि सिर्फ़ एक ही रास्ता सही है
कविता में हर बात की अनुमति है
और महज़ एक शर्त है
ख़ाली काग़ज़ बेहतर हो उठे।
(अंग्रेज़ी अनुवाद: मिलर विलियम्स)
निकानोर पार्रा चिलियन कवि हैं। प्रस्तुत कविताओं का हिन्दी में अनुवाद देवेश पथ सारिया ने किया है।
निकानोर पार्रा की कविताएँ (पहला भाग)