कविता संग्रह ‘भेड़ियों ने कहा शुभरात्रि’ से
ज़रूरत
फ़ौरी ज़रूरत थी
हथियारों को गलाकर
विशाल बुत बना लिया,
कल की कल देखेंगे
इस बुत को गलाकर
फिर हथियार बना लेंगे।
शिखर
यहीं ठीक हूँ
दिख तो रहा है
यहाँ से भी शिखर-
हज़ार दुश्मन मिलेंगे वहाँ,
जी!
डरता हूँ
दुश्मनों से?
ना जी
शिखरों से!
घोंसले
सिर्फ़ तिनकों के सहारे
नहीं बनते घोंसले-
देखो! ज़रा ग़ौर से
इस सृष्टि को,
कुछ टूटे हुए पंख भी
दिख जाएँगे
इधर उधर।
बीमार
एक बूढ़ी स्त्री ने
जब अपनी दवा की पर्ची के साथ
अपने बेटे की तरफ़
एक मुड़ा-तुड़ा नोट भी बढ़ाया
तो अहसास हुआ
कि ये दुनिया
वाक़ई बीमार है।
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