कविता संग्रह ‘भेड़ियों ने कहा शुभरात्रि’ से
शोक
मैं उस तरह नहीं रो सका
जैसे शोक के उस दृश्य में
बाक़ी लोग रो रहे थे
जो निकल गया था अनन्त यात्रा पर
उसकी बहुत थोड़ी
और धुँधली स्मृतियाँ ही
मेरे पास थीं
मैं जितनी देर भी रहा
उस दृश्य के भीतर
उन स्मृतियों के न होने का ही
मातम मनाता रहा।
जुलूस
बलात्कारियों और हत्यारों के पक्ष में
निकलने वाले जुलूस में
शामिल होने से पहले
ज़रा सोच लेना
कि यह जुलूस
तुम्हारे घर के सामने से भी गुज़रेगा,
ज़रा सोच लेना
कि पूछ सकती है
तुम्हारी माँ, बहन या बेटी
कि किस बात पर
निकल रहा है यह जुलूस?
यात्रा के दौरान
अचानक टकराती है दुर्गन्ध
हमारे नथुनों से
अचानक आ जाता है रुमाल
हमारी नाकों पर
इस दृश्य से बाहर निकलते ही
हम चैन की लम्बी साँस लेते हैं
और ज़रा भी नहीं सोचते
किसका शिकार हुआ!
किसने शिकार किया!
कि उस दुर्गन्ध का क्या हुआ?
कमाल की चीज़ है
यह रुमाल भी
जो हर बार
उड़ता हुआ
आ जाता है
दृश्य और अन्तरात्मा के बीच
पर्दा बनकर।
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