‘Prem Mein Milna Mat’, a poem by Vandana Kapil

उन जगहों ने अपना
अस्तित्व खो दिया
जिन्हें गवाह होना था
उन मौन पलों का
जहाँ निःशब्द बन वो पहरों
शब्द तलाशते थे

उन बाग़ों के दरख़्त भी
अब ठूँठ हो गए
जिनसे पीठ टिकाकर
दोनों बैठते थे

आसमान उजड़ा पहाड़
हो गया,
पत्थर-सा दिखता है
चाँद भी,
तारे पगडण्डियों पर पड़े
कंकड़ों की तरह
चुभते हैं,
और रात की आँखों से
आँसू ओस के टुकड़े बन
छलकते हैं
लेकिन
चलते-चलते जहाँ
आख़िरी बार
रोये थे दोनों
वहाँ अब हरियाई दूब उग
आयी है…

अगर संसार के
सभी प्रेमी मिल जाते
तो धरती
बाँझ हो जाती।

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