वो बड़ा सभ्य था,
कभी लुगाई पर हाथ न उठाता,
बस उसके मुँह पर थूक देता था।

वो भी बड़ी संस्कारी,
कभी चूँ तक न की,
बस सधे हाथ से पोंछ लेती थी।

वो बड़ा सभ्य था,
कभी कोई बन्धन नहीं,
बस मंगलसूत्र जब-तब कस देता था।

वो भी बड़ी संस्कारी,
कभी दम न घुटने दिया,
बस सधे हाथ गरदन पर फेर लेती थी।

वो बड़ा सभ्य था,
कभी उसकी खिलखिलाहट न रोकी,
बस गाड़ दी कीलें आँखों में।

वो भी बड़ी संस्कारी,
काजल की बाड़ लगायी,
समन्दर को थाम लिया।

यूँ ही संस्कारों,
जज़्बातों में,
रच गयी एक आलिशान ज़िन्दगी।

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