‘Satyam Shivam Sundaram’ by Nidhi Agarwal

देर रात की नीरवता में ब्यास की बहती निर्मल धारा की कल-कल ध्वनि गूँज रही थी। पुरुष एक उच्च शिला पर बैठा हुआ था, स्त्री कुछ नीचे पत्थर पर शीतल जलधारा में अपने पैर डाले थी। चन्द्रकिरणों ने उसके चेहरे की स्निग्धता को और भी बढ़ा दिया था।

“श्रद्धा…!”, पुरुष के कोमल स्वर से स्त्री का हृदय स्पंदित हो उठा। “श्रद्धा… जितना सत्य ब्यास का प्रवाह है… उतना ही मेरा तुम्हारे लिए प्रेम! तुम प्रतिदान दो न दो, यह पहाड़ी नदी-सा, तुम्हारी ही ओर बहते रहने को विवश है। समझो, इसका रुख मोड़ना मेरे भी सामर्थ्य में नहीं। यही नियति द्वारा चयनित है… अजेय-अमर है! कल मैं न रहूँगा लेकिन मेरा प्रेम… मेरा आशीर्वाद सदा तुम्हारे साथ होगा!”

स्त्री की आँखें नम हो गईं, “आप सदा मेरे साथ रहेंगे। आप सही कहते हैं, आपका साथ ईश्वरीय वरदान है… मेरे पिछले कर्मों का सुफल!”

स्त्री भाव विभोर है। स्नेहिल शब्दों ने जीवन भर की वेदना हर ली है। ऐसी प्रशांति का अनुभव… यही मोक्ष है… यह सत्यम शिवम सुंदरम का स्वरूप है।

ब्यास की धारा जैसे स्त्री के हृदय से जुड़ गयी। प्रेम का उद्गम हुआ और वह जैसे पहाड़ी दुर्गम मार्ग पर बह निकला। निर्जन पहाड़ अधिक सुगम हैं, मैदानों की तो अपनी वर्जनाएँ हैं। इस पहाड़ी नदी को पहाड़ पर ही बांधे रखना स्त्री और इस प्रेम दोनों की ही गरिमा के लिए आवश्यक है।

समय गुज़रता जा रहा है। वही पूर्णिमा की रात है। वही ब्यास का किनारा…

“श्रद्धा, तुम्हारे बिना मैं कुछ नहीं… तुम हो तो यह दिल धड़कता है… तुम हो तो संसार सुन्दर प्रतीत होता है अन्यथा तुम जानती हो मेरे हिस्से बस अमावस की रात है। तुम अमावस में पूर्णिमा का चाँद हो।” पुरुष ने मन के उद्गार व्यक्त किये।

“श्रद्धा… जितना सत्य ब्यास का प्रवाह है… उतना ही मेरा तुम्हारे लिए प्रेम। तुम प्रतिदान दो न दो यह पहाड़ी नदी-सा तुम्हारी ओर बहते रहने को विवश है। समझो, इसका रुख मोड़ना मेरे भी सामर्थ्य में नहीं। यही नियति द्वारा चयनित है। अजेय अमर है। कल मैं न रहूँगा लेकिन मेरा प्रेम… मेरा आशीर्वाद सदा तुम्हारे साथ होगा!”, बात को बढ़ाया उसने!

पहाड़ी नदी को अब रोकना सम्भव नहीं। बाँध टूट गया है। जल प्रपात पूरे आवेग से बह निकला। स्त्री को लगा कि यह क्या ईश्वरीय प्रकोप है? उसने भला कब किसको आहत किया? इतनी कठिन सज़ा? कैसे सम्भाले? किस से बाँटे? ब्यास में जल समाधि भी नहीं ले सकती। कई प्रश्न उठेंगे। मैदानी नदी पहाड़ पर कैसे पहुँच गई?

वही चाँद है… वही ब्यास है… वही कोमल स्वर…. वही पुरुष… वही स्त्री, किन्तु इस बार स्त्री जानती है यह शब्द शिव हो सकते हैं… यह शब्द सुन्दर अवश्य हैं, किंतु सत्य बिल्कुल नहीं हैं। यही शब्द कल रात इसी शिला पर बैठ किसी और स्त्री से भी कहे गए हैं!

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डॉ. निधि अग्रवाल
डॉ. निधि अग्रवाल पेशे से चिकित्सक हैं। लमही, दोआबा,मुक्तांचल, परिकथा,अभिनव इमरोज आदि साहित्यिक पत्रिकाओं व आकाशवाणी छतरपुर के आकाशवाणी केंद्र के कार्यक्रमों में उनकी कहानियां व कविताएँ , विगत दो वर्षों से निरन्तर प्रकाशित व प्रसारित हो रहीं हैं। प्रथम कहानी संग्रह 'फैंटम लिंब' (प्रकाशाधीन) जल्द ही पाठकों की प्रतिक्रिया हेतु उपलब्ध होगा।

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