‘Smritiyon Ki Dhoop’, a poem by Mridula Singh

ऑटो के पीछे
हिलते हुए पोस्टर की तरह तुम्हारा प्रेम
समय की दहलीज़ पर
डगमगाता-सा है
तुम्हें पता है कि
इससे विलग करती हूँ तुम्हें

कंक्रीट पर चलते जीवन
की जद्दोजहद में
कौंधियाती है तुम्हारी याद
और देखते ही देखते
नरम होते जाते हैं रास्ते
जिस पर चलती चली जाती हूँ
पीछे छूट जाता है गंतव्य
जीती हूँ रास्ते के सुख को

सर्दियों में ठिठुरता शहर
दुबका होता है जब ओढ़े
कोहरे की चादर
तुम्हारा ख़याल
भर देता है मुझमें गरमाई

तुम्हें सोचने भर से
जीवन के अँधेरे में छिटक
जाती है चम्पई धूप
छिन भर के लिए
जैसे रात में
दूर से आती हेडलाइट की
पीली रौशनी छिटक जाती है
धुँधली सड़क पर!

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मृदुला सिंह
शिक्षा- एम.ए., एम.फिल., पी.एच.डी., सेट | साहित्यिक गतिविधियों में भागेदारी, व्याख्यान, संचालन आदि | पूर्व प्रकाशन- सांस्कृतिक पत्रिका लोकबिम्ब, दैनिक युवा प्रवर्तक, इटारसी, जनसंदेश टाइम्स, लखनऊ, प्रेरणा रचनाकार में लेख, कविताएँ लघुकथा का प्रकाशन | संपादक- राष्ट्रीय शोध पत्रिका रिसर्च वेब, स्मारिका | पुस्तक-संपादन- सामाजिक संचेतना के विकास में हिंदी पत्रकारिता का योगदान, मोहन राकेश के चरित्रों का मनोविज्ञान, सं. सरगुजा की सांस्कृतिक विरासत (प्रकाशाधीन), सं .ब्रम्हराक्षस (प्रकाशाधीन) | आकाशवाणी अम्बिकापुर से वार्ताएं और साक्षात्कार प्रसारित | बीस से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिकाओं में शोध पत्र प्रकाशित | संप्रति- होलीक्रोस वीमेंस कॉलेज अम्बिकापुर में सहायक प्राध्यापक एवं विभागाध्यक्ष (हिंदी) | मेल [email protected]