Tag: ईश्वर

Joshnaa Banerjee Adwanii

मज़दूर ईश्वर

'Mazdoor Ishwar', a poem by Joshnaa Banerjee Adwanii अनुपस्थितियों को सिखायी सोलह कलाएँ, गुनाह के अनेक तथ्य बनाकर प्रायश्चित्त को मोक्ष दिया, संगीत की लय में प्रेमियों की आत्माओं के लिए गुंजाइश...
Book, Flower, Heart, Love

प्रेम ईश्वर

'Prem Ishwar', a poem by Nishant Upadhyay तुम्हें देखना है, झाँकना बीते हुए वक़्त की आँखों में, जिनकी नज़र पीठ पर होती है मेरे पलटने से ऐन पहले तक तुम्हें...
Naresh Saxena

औक़ात

वे पत्थरों को पहनाते हैं लंगोट पौधों को चुनरी और घाघरा पहनाते हैं वनों, पर्वतों और आकाश की नग्नता से होकर आक्रांत तरह-तरह से अपनी अश्लीलता का उत्सव मनाते हैं देवी-देवताओं...
ishwar nahi neend chahiye_featured-image

ईश्वर नहीं नींद चाहिए

औरतों को ईश्वर नहीं आशिक नहीं रूखे फीके लोग चाहिए आस पास जो लेटते ही बत्ती बुझा दें अनायास चादर ओढ़ लें सर तक नाक बजाने लगें तुरंत नजदीक मत...
Vidrohi

तुम्हारा भगवान

तुम्हारे मान लेने से पत्थर भगवान हो जाता है, लेकिन तुम्हारे मान लेने से पत्थर पैसा नहीं हो जाता। तुम्हारा भगवान पत्ते की गाय है, जिससे तुम खेल तो...
God, India, Worship, Faith, Prayer, Temple, Hindu

सबसे उर्वर ज़मीन

"पाषाण तराशे गए, सुंदर और सुंदर। भगवान कहा गया उन्हें... ...भेद तब खुल गया जब मूरत के सामने मनुष्यता का सबसे जघन्य और बर्बर दृश्य भी भगवान के चेहरे पर शिकन न ला सका।"
Birsa Munda

क्यों बीरसा मुण्डा ने कहा था कि वह भगवान है?

बीरसा मुण्डा, जिसके पूर्वज जंगल के आदि पुरुष थे और जिन्होंने जंगल में जीवन को बसाया था, आज वही बीरसा और उसका समुदाय जंगल की धरती, पेड़, फूल, फल, कंद और संगीत से बेदखल कर दिया गया है! उनके पास खाने को नमक नहीं, लगाने को तेल नहीं, पहनने को कपड़ा नहीं! जमींदार और महाजनों के कर्जों में डूबी यह जाति खुद को मुण्डा कहलाने में भी शर्म महसूस करती है। सदियों के दमन ने उन्हें विश्वास दिला दिया है कि मुण्डाओं का तो जीवन ही है इस श्राप को भोगते रहना। और नए कानूनों के चलते, किस्मत, अंधविश्वासों और टोन-टोटकों में फँसा यह समुदाय जंगल के कठोर जीवन में रहने के लायक भी नहीं रहा। ऐसे में बीरसा, एक छोटी उम्र का नौजवान मिशन के स्कूल में थोड़ा पढ़कर, बंसी बजाकर, नाच-गाकर एक दिन खुद को इस समुदाय का भगवान घोषित कर देता है, और मुण्डा लोग उसे भगवान मानने लगते हैं, क्योंकि उन्हें बताया गया था कि एक दिन भगवान मुण्डाओं में ही जन्म लेगा और उनका उद्धार करेगा। बीरसा ने - जिसकी अपने समुदाय के अधिकारों व स्वाभिमान के लिए लड़ने के कारण अंग्रेजों द्वारा एक साजिश के तहत पच्चीस साल की छोटी उम्र में हत्या कर दी जाती है - ऐसा क्यों किया और ऐसा करने से उसे क्या मिला, इसकी एक समझ मिलती है महाश्वेता देवी के उपन्यास 'जंगल के दावेदार' के इस अंश से! ज़रूर पढ़िए!
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