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सभी सुख दूर से गुज़रें
सभी सुख दूर से गुज़रें
गुज़रते ही चले जाएँ
मगर पीड़ा उमर भर साथ चलने को उतारू है!
हमको सुखों की आँख से तो बाँचना आता नहीं
हमको...
दोपहर का भोजन
दुःख
दुःख को सहना
कुछ मत कहना—
बहुत पुरानी बात है।
दुःख सहना, पर
सब कुछ कहना
यही समय की बात है।
दुःख को बना के एक कबूतर
बिल्ली को अर्पित कर...
पीड़ा, नायिका
पीड़ा
ढल चुका है दिन
ढल गया
पुष्पों का यौवन...
अछोर आकाश में अब
चाँद ढल रहा धीरे-धीरे
डूब रहे हैं नक्षत्र
देखो!
रात ढल गई
आधी-आधी...
आयु ढल गई
ढल गए वे दिन
सहर्ष जिए थे जो...
दर्द आएगा दबे पाँव
और कुछ देर में जब फिर मेरे तन्हा दिल को
फ़िक्र आ लेगी कि तन्हाई का क्या चारा करे
दर्द आएगा दबे पाँव लिए सुर्ख़ चराग़
वो जो...
वसीयत
सुख एक ख़ूबसूरत परिकल्पना है
जीवन, कम और अधिक दुःख के मध्य
चयन की जद्दोजहद!
मार्ग के द्वंद में फँसे,
नियति को देते हैं हम
मन्नतों की रिश्वतें
देवता मनुष्यों के...
अनूदित पीड़ाएँ
आसमान साफ़ होकर भी
धुंधलाया था।
पीड़ा के खंडित अवशेष
पाषाण नहीं होते हमेशा।
अनूदित पीड़ाएँ
लहलहाते खेतों में
बंजर अवशेष थीं।
सम्पन्नता में विपन्न जी रहीं
अधमरी फसलें...
अपुष्ट कुपोषित!
कलकल छलछल बहती
नदियों...
पीड़ा
वृक्ष मूक नहीं होते, उनकी होती है आवाज़,
विरली-सी, सांकेतिक भाषा।
वो ख़ुद कुछ नहीं बोलते लेकिन
घोंसलों में भरते हैं नन्हें पक्षी जब
विलय की किलकारियाँ,
उनको रिझाने,...
राकेश मिश्र की कविताएँ
सन्नाटा
हवावों का सनन् सनन्
ऊँग ऊँग शोर
दरअसल एक डरावने सन्नाटे का
शोर होता है,
ढेरों कुसिर्यों के बीच बैठा
अकेला आदमी
झुण्ड से बिछड़ा
अकेला पशु
आसानी से महसूस कर सकता...
दूरियों से कोई पीड़ा ख़त्म नहीं होती
'Dooriyon Se Koi Peeda Khatm Nahi Hoti', a poem by Rakhi Singh
कई दिनों से
कलाई के पास की नस में तीखा-सा दर्द रह रहा है
डॉक्टर...
मीठी पीड़ा
'Meethi Peeda', a poem by Poonam Sonchhatra
मैं प्रेम में थी
या प्रेम मुझमें था...
अमावस की काली रात में भी
झर-झर झरती रही शरद पूनम की शुभ्र चाँदनी
मैंने...