Tag: Shivshambhu Ke Chitthe
मार्ली साहब के नाम
"जिस काम को आप खराब बताते हैं, उसे वैसे का वैसा बना रखना चाहते हैं, यह नये तरीके का न्याय है।"
लॉर्ड मिन्टो का स्वागत
"प्रजा ताक का बालक है और प्रेस्टीज नवीन सुन्दरी पत्नी - किसकी बात रखेंगे? यदि दया और वात्सल्यभाव श्रीमान् के हृदय में प्रबल हो तो प्रजा की ओर ध्यान होगा, नहीं तो प्रेस्टीज की ओर ढुलकना ही स्वाभाविक है।"
बंग विच्छेद
"जो प्रजा तुगलक जैसे शासकों का खयाल बरदाश्त कर गई, वह क्या आजकल के माई लार्ड के एक खयाल को बरदाश्त नहीं कर सकती है?"
विदाई सम्भाषण
"क्या आँख बन्द करके मनमाने हुक्म चलाना और किसी की कुछ न सुनने का नाम ही शासन है? क्या प्रजा की बात पर कभी कान न देना और उसको दबाकर उसकी मर्जी के विरुद्ध जिद्द से सब काम किये चले जाना ही शासन कहलाता है? एक काम हो ऐसा बताइये, जिसमें आपने जिद्द छोड़कर प्रजा की बात पर ध्यान दिया हो।"
एक दुराशा
नारंगी के रस में जाफरानी वसन्ती बूटी छानकर शिवशम्भु शर्मा खटिया पर पड़े मौजों का आनन्द ले रहे थे। खयाली घोड़े की बागें ढीली...
आशा का अन्त
"माई लार्ड! अबके आपके भाषण ने नशा किरकिरा कर दिया। संसार के सब दुःखों और समस्त चिन्ताओं को जो शिवशम्भु शर्मा दो चुल्लू बूटी पीकर भुला देता था, आज उसका उस प्यारी विजया पर भी मन नहीं है।"
पीछे मत फेंकिये
"अब यह विचारना आप ही के जिम्मे है कि इस देश की प्रजा के साथ आपका क्या कर्तव्य है। हजार साल से यह प्रजा गिरी दशा में है। क्या आप चाहते हैं कि यह और भी सौ पचास साल गिरती चली जावे?
कितने ही शासक और कितने ही नरेश इस पृथिवी पर हो गये, आज उनका कहीं पता निशान नहीं है। थोड़े-थोड़े दिन अपनी अपनी नौबत बजा गये, चले गये। बड़ी तलाश से इतिहास के पन्नों अथवा टूटे फूटे खण्डहरों में उनके दो चार चिह्न मिल जाते हैं।"
वैसराय का कर्तव्य
"आपने इस देश को कुछ नहीं समझा, खाली समझने की शेखी में रहे और आशा नहीं कि इन अगले कई महीनों में भी कुछ समझें। किन्तु इस देश ने आपको खूब समझ लिया और अधिक समझने की जरूरत नहीं रही।"
"आपने अपनी समझ में बहुत-कुछ किया, पर फल यह हुआ कि विलायत जाकर वह सब अपने ही मुँह से सुनाना पड़ा। कारण यह कि करने से कहीं अधिक कहने का आपका स्वभाव है।"
"जिन आडम्बरों को करके आप अपने मन में बहुत प्रसन्न होते हैं या यह समझ बैठते हैं कि बड़ा कर्तव्य-पालन किया, वह इस देश की प्रजा की दृष्टि में कुछ भी नहीं है। वह इतने आडम्बर देख सुन चुकी और कल्पना कर चुकी है कि और किसी आडम्बर का असर उस पर नहीं हो सकता।"
श्रीमान् का स्वागत्
"कोई दिखाने वाला चाहिये, भारतवासी देखने को सदा प्रस्तुत हैं। इस गुण में वह मूँछ मरोड़कर कह सकते हैं कि संसार में कोई उनका सानी नहीं। लार्ड कर्जन भी अपनी शासित प्रजा का यह गुण जान गये थे, इसी से श्रीमान् ने लीलामय रूप धारण करके कितनी ही लीलाएं दिखाई।"
लीलाएं तो आज भी कम नहीं होतीं और भारतवासियों का एक बड़ा वर्ग हाथ जोड़े उन लीलाओं को देखता भी है! सौ वर्षों से ज़्यादा के बाद भी हमने अपना यह गुण छोड़ा नहीं? ;)
"कोई दिखाने वाला चाहिये, भारतवासी देखने को सदा प्रस्तुत हैं। इसी से श्रीमान् ने लीलामय रूप धारण करके कितनी ही लीलाएँ दिखाई।"
शिवशम्भु के चिट्ठे
बनाम लार्ड कर्जन
श्रीमान् का स्वागत्
वैसराय का कर्तव्य
पीछे मत फेंकिये
आशा का अन्त
एक दुराशा
विदाई सम्भाषण
बंग विच्छेद
लार्ड मिन्टो का स्वागत
मार्ली साहब के नाम
आशीर्वाद
शाइस्ताखां का खत - 1
शाइस्ताखां...
बनाम लार्ड कर्जन
"यह मूर्तियां किस प्रकार के स्मृतिचिह्न हैं? इस दरिद्र देश के बहुत-से धन की एक ढेरी है, जो किसी काम नहीं आ सकती। एक बार जाकर देखने से ही विदित होता है कि वह कुछ विशेष पक्षियों के कुछ देर विश्राम लेने के अड्डे से बढ़कर कुछ नहीं है। 'शो' और ड्यूटी का मुकाबिला कीजिये। 'शो' को 'शो' ही समझिये। 'शो' ड्यूटी नहीं है!"
1903 में लिखा गया यह चिट्ठा उस समय के शासकों में से एक लार्ड कर्जन पर बालमुकुन्द गुप्त का एक व्यंग्यपूर्ण प्रहार था, जिसमें उन्होंने जनता के हितों के कार्यों की जगह नुमाइशी कामों को प्राथमिकता देने पर कर्जन को आड़े हाथों लिया था.. क्या यह चिट्ठा आज भी प्रासंगिक है? आपको क्या लगता है?