नेपथ्य की नर्तकी
वह जिसने भाग नहीं लिया
मंच पर किसी नृत्य में
खुलकर नाच रही है मंच से नीचे
गा रही है हर बांग्ला गीत
दोहरा रही है रवींद्र संगीत
वह कोरस की गायिका है
नेपथ्य की नर्तकी
वह किसी प्रस्तुति में न होकर भी
है हर प्रस्तुति की नायिका
साल के हर दिन वह गृहिणी होती है
एक रुटीन दिनचर्या से हलकान
दुर्गा पूजा उसके जीवन का टापू है
बंगाल में होती तो टापू ज़्यादा चित्तरंजक होता
ज़्यादा दिन रुक सकती थी वह वहाँ
यहाँ दो ही दिन को मिला है उसे ठहराव
ठहराव में निरंतर चलायमान
वह इतने वक़्त खड़ी, नाचती, गाती रही है
कि अब उसकी कुर्सी भर गयी है
जब वह थक जाती है
कुछ देर दूसरी स्त्री की गोद में बैठ जाती है
उस दूसरी स्त्री को मैं मन-ही-मन
मौसी कहता हूँ
हालाँकि वह शायद मानती हो
उसे दुर्गा माँ ही…
गीत एक सेतु है
उनमें से कुछ तीस पार हैं
कुछ तीस से थोड़े साल छोटी
कुछ विवाहिताएँ, कुछ लड़कियाँ
वे सारा लंदन ठुमका दे रही हैं ताइवान में
बकेट लिस्ट में मौजूद
लंदन जाने का मेरा अधूरा सपना उभरता है
और परे सरक जाता है, एक ठुमके से
अगला गाना बजा है
“मेरे ख़्वाबों में जो आए”
इस गीत पर वे सब षोडशी बन जाती हैं
ख़्वाबों में आने वाला जो कोई था
उनमें से किसी का प्रारब्ध नहीं था
अपने वर्तमान साथी के सामने वे नाच रही हैं
कैशोर्य के स्वप्निल प्रेयस को याद करती हुईं
होगा कोई उनके ख़्वाबों का पथिक
अब पकड़ रहा होगा मछली ब्रह्मपुत्र में
कोई करता होगा शोध हार्वर्ड में
कोई उलझा होगा
कि वाम या दक्षिण, किस राह चले
लड़कियों के लिए गीत एक सेतु है
भूतकाल के एक भूत तक पहुँचने का
उन्हें कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता
कि भूत, वर्तमान बन कहाँ घटित होता होगा!
वह क्षणिक चमक
पंडाल में प्रवेश के साथ
टूट गए मेरे सारे पूर्वाग्रह
उन्होंने मुझे पराएपन का भान न होने दिया
कई साल पहले मिला वह खड़ूस बंगाली
सही प्रतिनिधि नहीं था अपनी संस्कृति का
वह मेरी ख़ास तौहीन करता था
उसने डाले थे मेरे मन में पूर्वाग्रह के बीज
समकालीन परिदृश्य से प्रभावित मेरे दोस्तों
यदि कुछ ग़लतफ़हमियाँ हैं तुम्हें भी
तो बताता चलूँ
कोई जादू-टोना नहीं जानतीं ये लड़कियाँ
कहीं की भी स्त्रियों में
अनंत रचनात्मक प्रेरणाएँ छुपी हैं
जो चमकती हैं कभी सतत, कभी बस क्षण-भर को
उस क्षणिक चमक में छुपी होती हैं
कालजयी कविताएँ और टकटकी लगा देखने वाली तस्वीरें
यह सच्चाई मुझे पता चली
उस बंगाली लड़की की
आँखों और मुस्कराहट की कैंडिड तस्वीर लेते समय!
देवेश पथ सारिया की कविता 'सबसे ख़ुश दो लोग'