1

बहुत कुछ बचेगा सहेजने को
पर मैं सहेजूँगी तुम्हारी कविताएँ
ताकि
पीड़ाओं की गंध में
समेट सकूँ अपने कण्ठ में
उच्चरित
तुम्हारे नाम का स्वर।

2

संसार से उपहार के तौर पर
मैंने कुछ माँगना चाहा तो
मैंने माँगी कुछ प्रार्थनाएँ,
ताकि प्रार्थनाओं के मध्य उठने वाले
स्वरों के आरोह अवरोह की
रिक्तता में
भर सकूँ तुम्हारे नाम का आलाप।

3

मैं नहीं जानती कि मैंने
प्रथम स्वर में क्या पुकारा होगा,
पर यह निश्चित है
मेरे अन्तिम स्वर में सिर्फ़
तुम्हारा ही नाम होगा।

4

अन्तिम मनोकामना में
जब मुझे चुनने को मिलीं
मेरी साँसें
या
तुम्हारा नाम!

और अब पता नहीं क्यों
ये दूसरी दुनिया के लोग
मुझे तुम्हारे नाम से जानते हैं!

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