चूँकि तुम ब्राह्मण समुदाय से अभिन्न नहीं हो
इसलिए सम्भव है विचारों में भी छिन्न भिन्न नहीं हो।
तुम्हारा ईश्वर में विश्वास पुष्ट है
तुम्हारी दृष्टि में भाग्य दुष्ट है
ज्योतिषी भरमा देते हैं तुम्हारा मन
और तुम भरमा देती हो मेरा मन।
मैं मिला कुछ पण्डितों और ज्योतिषियों से
और कुछ जीवन जिज्ञासु मनीषियों से
एक ने बताया कि शुभ नहीं होते हैं लाल तिल
दूसरे ने कहा ये तो विदेश यात्रा का लक्षण है
तीसरे के अनुसार यह पीठ पीछे बुराई का प्रतीक है
चौथे की दृष्टि में यह सुरक्षा में सेवा का दर्पण है।
मैंने सबकी बात नकार दी और
तुम्हें स्मरण किया
तुम्हारी पीठ के लाल तिल का विवरण दिया
दरअसल ग्रीवा से अनुत्रिक तक
ये तुम्हारी पीठ की मध्यरेखा नहीं है
ये वही नदी है जिसे सतह पर
प्रवाहित होते किसी ने देखा नहीं है।
चूँकि यह तिरोहित हो गयी और दृषद्वती कहलाती है
पर हम जैसे प्रेमियों द्वारा इस युग में भी पूजी जाती है।
मैंने कहा कि तुम्हारे बदन पर जो मैंने चुम्बन दिये हैं
वो छोटी लाल गठरी में एकत्र होकर चिपक गये हैं।
यह लाल तिल जो बैठा है इस नदी के बीच-बीच
लाल वस्त्रों में कोई साधु साधना में लीन हुआ है
दु:ख है उसको कि अब यह क्षेत्र जलहीन हुआ है।
या कोई प्रेम ऋषि आया था स्नान करने
अपना ताम्र कमण्डल भूल गया था
पूर्व जन्म में ज्योतिषानुसार वो मैं ही था
जो वायु के झोंके से नदी में लुढ़क गया था
मुझे ढुलकना था, दूर तक तैर के जाना था
मगर भर गया था तो निमग्न हो जाना था
पर उभर आया मैं, प्रेम की ही शक्ति थी
इस ताम्र तिल में आस्था थी, मेरी आसक्ति थी।
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