एक स्त्री पहाड़ पर रो रही है
और दूसरी स्त्री
महल की तिमंज़िली इमारत की खिड़की से बाहर
झाँककर मुस्कुरा रही है
ओ, कविगोष्ठी में स्त्रियों पर
कविता पढ़ रहे कवियों!
देखो कुछ हो रहा है
इन दो स्त्रियों के बीच छूटी हुई जगहों में,
इस कहीं कुछ हो रहे को दर्ज करो
कि वह अक्सर तुम्हारी पकड़ से छूट जाता है

एक स्त्री गा रही है
दूसरी रो रही है
और इन दोनों के बीच खड़ी एक तीसरी स्त्री
इन दोनों को बार-बार देखती कुछ सोच रही है
ओ, स्त्री विमर्श में शामिल लेखकों
क्या तुम बता सकते हो
यह तीसरी स्त्री क्या सोच रही है?

एक स्त्री पीठ पर बच्चा बांधे धान रोप रही है
दूसरी सरकार गिराने और बनाने में लगी है
ओ आदिवासी अस्मिता पर बात करने वाली
झण्डाबरदार औरतों
इन पंक्तियों के बीच
गुम हो गया उन औरतों का पता
जिनका नाम तुम्हारी बहस में शामिल नहीं है!

Book by Nirmala Putul:

निर्मला पुतुल
निर्मला पुतुल (जन्मः 6 मार्च 1972) बहुचर्चित संताली लेखिका, कवयित्री और सोशल एक्टिविस्स्ट हैं। दुमका, संताल परगना (झारखंड) के दुधानी कुरुवा गांव में जन्मी निर्मला पुतुल हिंदी कविता में एक परिचित आदिवासी नाम है। निर्मला ने राजनीतिशास्त्र में ऑनर्स और नर्सिंग में डिप्लोमा किया है।