आज सूरज ने कुछ घबराकर रोशनी की एक खिड़की खोली
बादल की एक खिड़की बन्द की और अँधेरे की सीढ़ियाँ उतर गया

आसमान की भवों पर जाने क्यों पसीना आ गया
सितारों के बटन खोलकर उसने चाँद का कुर्ता उतार दिया

मैं दिल के एक कोने में बैठी हूँ, तुम्हारी याद इस तरह आयी
जैसे गीली लकड़ी में से गाढ़ा कड़ुवा धूआँ उट्ठे

साथ हज़ारों ख़याल आए जैसे सूखी लकड़ी
सुर्ख़ आग की आहें भरे, दोनों लकड़ियाँ अभी बुझायी हैं

वर्ष कोयलों की तरह बिखरे हुए कुछ बुझ गए, कुछ बुझने से रह गए
वक़्त का हाथ जब समेटने लगा, पोरों पर छाले पड़ गए

तेरे इश्क़ के हाथ से छूट गई और ज़िन्दगी की हण्डिया टूट गई
इतिहास का मेहमान चौके से भूखा उठ गया…

Book by Amrita Pritam:

Previous articleवसीयत
Next articleरिश्ते
अमृता प्रीतम
(31 अगस्त 1919 - 31 अक्टूबर 2005)पंजाब की सबसे लोकप्रिय लेखिका, कवयित्री व उपन्यासकारों में से एक।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here